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मोक्ष : आज भी सम्भव
दर्शन। वे लकीर के फकीर नहीं। महावीर ने जो हर इन्सान में ईश्वरत्व की सम्भावना बताई. वह पाश्चात्य में दर्शन के सम्बन्ध में हैं। कितने दार्शनिक हुए हैं पश्चिम में। रोडले, डेविड ह्यम, हेडफील्ड, कांट, गेटे,—ये सब वर्तमान उपज हैं। वहाँ पर हर व्यक्ति यदि क्षमता हो तो दार्शनिक कह सकता है अपने को। पर भारत में कोई और आनन्द जैसे लोग भी तो कम है, जिन्हें सच्चा मार्ग दर्शाया जा सके।
समय प्रतिकूल भी होता है, अनुकूल भी होता है। समय, क्षत्र, भाव प्रतिकूल और अनुकूल दोनों होते हैं। अवसर कभी अच्छा मिलता है और कभी अच्छा नहीं मिलता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अब जिन्दगी में दूसरा अवसर फिर कभी मिलेगा ही नहीं। निलेगा, जरूर मिलेगा। और यदि नहीं भी मिलता है तो अपना क्या जाता है ? यदि हम मोक्ष के लिए प्रयास करते हैं, यह सोचकर कि मुझे इसी जीवन में, इसी जन्म में मोक्ष पाना है और हम प्रयास करते हैं, तथापि यदि मोक्ष नहीं मिलता तो अपने को कोई घाटा तो नहीं है।
कुआं खोदते हैं पानी को पाने के लिए। यदि पानी नहीं निकलता है तो घाटा तो कुछ नहीं हुआ। कम से कम शारीरिक परिश्रम तो हो गया। व्यायाम तो हो गया। हाथ-पैर तो कम से कम मजबूत हो गये। मोक्ष के लिए प्रयास किया। कोई बात नहीं, प्रयास पूर्ण नहीं था, मोक्ष नहीं मिलता तो कम से कम स्वर्ग तो मिल जायेगा। वह तो कहीं दूर नहीं जायेगा। कुछ न कुछ तो मिलेगा। मिलेगा जरूर। अभी मिलेगा। यहीं मिलेगा। बाद में कहीं और कभी भी नहीं मिलेगा जो भी मिलना है, अभी मिल सकता है और यहीं मिल सकता है।
___मैंने सुना है, एक ब्राह्मण पण्डित भोजन करने के लिए तैयार हुआ। अचानक उसे याद आया कि बैल को खेत से लाना है। वह खेत की ओर चल पड़ा, साथ में भोजन लिया। सोचा कि आते समय भोजन कर लेगा। बैल पर बैठ गया और रवाना हो गया। भोजन कर रहा है, बैल पर बैठे-बैठे ही। रास्ते चलते एक किसान ने पूछा कि अरे ! तुम ब्राह्मण हो। भोजन करने के लिए पहले गोबर का मांडला बनाना पड़ता है। उस पर रखकर तुम भोजन करते हो। लेकिन इस बैल पर बैठे-बैठे बिना मांडले के कैसे भोजन कर रहे हो ? उसने कहा भाई ! गोबर बैल के भीतर है, कहीं बाहर नहीं। तो बाहर न बनाकर मैंने अन्दर ही गोबर का मांडला बनाया हुआ है। इसलिए कोई दिक्कत की बात नहीं है। जब भोजन करना ही है फिर वह मांडला बनाने की क्या जरूरत ? बाहर से दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है, गोबर तो बैल के पेट में ही है।
. जब मोक्ष को पाना ही है तो फिर तत्पर क्यों नहीं हो जाते। गोबर का मांडला बैल के पेट में है या पीठ पर-इस झंझट में क्यों पड़ते हो? तुम्हें भोजन से मतलब है या गोबर से ? शुक्ति से मतलब है या मोती से ? हमें मतलब है केवल मोक्ष से । समय से मतलब ही नहीं है कि अभी होगा या नहीं।
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