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दिखाइ कै, सिर ढकि सकुलि समाहि", वाली उस क्रिया - विदग्धा नायिका का आज नाम मात्र भी महत्व नहीं रहा है क्योंकि आजकल तो स्वयं ही इन अंगों का प्रदर्शन एक साधारण बात है । नागिन की तरह काली और लम्बी वेणियों का युग अपभ्रंश हो गया है और बाड हेयर से लेकर विभिन्न प्रकार की आकृतियों वाले घोंसला, बुर्ज आदि न जाने क्या-क्या कह कर पुकारा जाता है, ऐसे जूड़ो फैशन की भी बाढ़ आ रही है । यह समय सुदूर नहीं कि जूड़े सर से चार-छः गुने बड़े तक बनने लगेंगे। फैशनों को अपनाने में नवयुवति वर्ग से नवयुवक वर्ग पीछे नहीं है । मर्दानगी का चिन्ह समझे जाने वाली मूँछें अब तो आपको अंगुलियों पर गणना करने जितनी ही मिलेंगी। इनके चेहरे पर यदि विधाता ने ऊबड़-खाबड़ - कंटीली झाड़ी लगाकर बदसूरत बनाने का अत्याचार किया तो क्या हुआ, नवयुवक दाढ़ी-मूंछों को सफाचट करके और पाउडर- क्रीम लगाकर पूर्णरूपेण लड़कियों के समान सूरत बनाने का सुप्रयत्न करते हैं । हिन्दुत्व की पहचान कराने वाली चोटी इनके माथे से ऐसे गायब होती जा रही है जैसे गधे के सिर से सींग । प्राचीन जमाने के केशविन्यास को तो अब 'मिलट्री कट' कहकर 'आउट आफ डेट' कहा जाता है । पच्चीस और उनतीस इंच की मोहरी वाली पैंट का परित्याग करके बारह-तेरह इंच की मुहरी वाली पैंटें पहनकर सीढ़ियों पर चढ़ते अथवा बस में सवार होते समय बड़ी कठिनाई का सामना करते हैं या पैंट फट जाने पर उपहास के द्वारा प्रशंसा के उत्तम पात्र बनते है ।
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यह आधुनिक युग है जिसमें हम अपना सर्वस्व विदेशी प्रांखों से देखते हैं। हम प्रत्येक बात का परीक्षण पाश्चात्य संस्कृति के मानदण्डों से करते हैं । अब आज अपने आपको, अपनी संस्कृति तथा सभ्यता को विस्मृत कर स्वतन्त्रता के उत्सव मनाये जा रहे हैं । इस उत्सव पर
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