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________________ ७२ वृद्धा ने अपना दुखड़ा रोया कि मेरा बेटा युवक हो गया है, यह बात अच्छी है पर वह मुझे हमेशा दुत्कारता रहता है कि तूने मुझे नौ मास तक पेट में रखा तो मेरे पर क्या अहसान किया ? आज चाहे तो नौ महीने के नौ टके भाड़े के रूप में ले सकती है। तत्काल राजा ने उसके पुत्र को दरबार में उपस्थित होने की आज्ञा दी । पुत्र के उपस्थित होने पर जन्म के समय जितना वजन बच्चे का होता है, उतना बड़ा पत्थर उसके पेट पर रखवा कर गीले चमड़े से कस कर बंधवा दिया। सूर्य के प्रचंड ताप में खड़ा करने से चमड़ा सूख कर कड़ा होने लगा। चमड़े का चुस्त होना शरीर में असह्य पीड़ा का आविर्भाव था। पीड़ा से व्याकुल होकर उसने राजा से क्षमा याचना की भीख मांगी और जीवन भर माँ की सेवा करने की बात करन लगा। प्रति उत्तर में राजा ने उससे कहा-तेरी माँ की सेवा तो राजदरबार से हो ही जायेगी। पर नौ मास के स्थान पर नव दिन तक तुझे अब इसी प्रकार रहना होगा भला बता तूने किया, मुझ पर क्या उपकार । नव मासों के नव टके देने को हं तैयार ।। नौ दिनके पश्चात् फिर तुझे नौ टके भी नहीं देने पड़ेंगे और बाद में तुझे मुक्त भी कर दिया जायेगा। साथ ही बूढ़ी माँ से उऋण भी। दर्द के मारे उसने गिड़गिड़ा कर राजा से छोड़ देने की प्रार्थना की और माँ की सेवा करने का पक्का वचन दिया। राजा ने उसे यह कह कर मुक्त कर दिया कि माँ के ऋण से कोई पुत्र कभी भी मुक्त नहीं हो सकता। ___ आज पंचम पारे में माँ की प्रेम साधना एक दीर्घ-यात्रा सृदश ही रही है जिसका प्रारम्भीकरण तो पुत्र के प्रति गहरी आसक्ति और प्रत्युत्कृष्ट मनोकामनाओं से हुना और अन्त ! अन्त मानव जीवन के उस अन्तिम पड़ाव पर हुआ जिसको मानव मात्र स्वयं की पराजय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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