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कर दिये । वे जानते हैं, वर्तमान युवा सपूतों को । हरिराम व्यास जी ने 'व्यासवाणी' में लिखा है
जिहि कुल उपज्यो पूत कपूत ।
ताको बंश नाम है जैहें गिधयो जमदूत ॥
घर पहुंचा । माँ निद्राधीन, पुत्र का चिन्ताशील चित्त उत्तेजित । हाथ में तेज धार वाला चाकू । और माँ बेटा बेटा माँ..................ग्रह sss........ | हा पुत्र ! रक्त ही रक्त । रक्त का फव्वारा सा छूट गया । हाथ भर चाकू माँ के जिंगर के पार हो गया । चीख निकलते ही महाप्रलय का सागर उमड़ पड़ा । श्रासमान चिंघाड़ उठा, पृथ्वी थर्रा उठी । दिल को फाड़कर कलेजा निकाल कर युवक दौड़ पड़ा अनवरत गति से अपनी लैला को मनाने के लिए । आज उसकी मल्लिका खुश हो जायेगी । मन में प्रसन्नता । मनही मन मुस्कराहट वाह रे जालिम |
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आह"
रात्रि का समय ठोकर लगी और उसी के साथ गिर पड़ा, हाथ से छूट गया माँ का कलेजा, मिट्टी से लिप्त हो गया । संभला, पुनः उठाने लगा। यह क्या ? आकाश से आकाशवाणी हुई | लेकर अंगड़ाई कलेजा बोला
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पर...
"हाय रे लाल ठोकर लगने से कहीं तेरे चोट तो नहीं आई।" परमात्मा के दर्शन हुए, आत्मा स्वच्छ हो गई । अग्नि के दर्शन हुए, मोम पिघल गया। हथोड़े के दर्शन से पत्थर चूर-चूर हो गया । पर पत्थर को भी पिघला कर पानी बनाने की प्रबल शक्ति रखने वाले इन शब्दों का भी उस नीच पर कोई असर नहीं पड़ा । कायिक प्रेम ने उसे अंधा ही नहीं बहरा भी कर डाला था । भागता हुआ माशूका के द्वार पर जा पहुंचा । दरवाजा खटखटाया । घंटी बजी । वह अन्दर से आयी ।
कलेजा डालकर उसके कदमों में बोला - लो मेरी जान ! जो
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