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________________ ५६ ही पीना होगा । अधुना जीवन में दुःखों व विषमता का जड़ नारी की उपेक्षा ही हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और डा० रामकुमार वर्मा आदि ने जिस १३०० से १७०० वि० तक को भक्तिकाल कहा, उसमें नारी को माया का प्रतीक मानकर निन्दा की गई थी तो १७०० से १६०० वि० तक रीतिकाल में उसका शारीरिक वासनात्मक अथवा विलासी स्वरूप ही चित्रित किया गया। वर्तमान काल में रवीन्द्रनाथ टैगोर महात्मा गांधी तथा अन्य सन्त महापुरुषों की प्रेरणा पाकर कवियों और साहित्यकारों ने भी नारी-गौरव की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित करने का प्रयास किया है। __ श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी की राधा ; मैथिलीशरण गुप्त की उर्मिला, यशोधरा, कुब्जा, गोपियाँ तथा कैकेयी; जयशंकर प्रसाद की श्रद्धा, देवसेना, मल्लिका, मालविका तथा ध्र वस्वामिनी आदि नारी पात्रों में नारीत्व और मातृत्व का उच्चत्तम रूप प्राप्त होता है। प्रत्येक चिन्तक ने स्वीकार किया है कि यह नारी पुरुष को सन्मार्ग की ओर प्रेरित तो करती है साथ ही समय-समय पर उसकी उच्छृखलता को मर्यादित भी करती हैं। ___नारी तो नारी ही है। इस वस्तु में भेद नहीं, दृष्टि में भेद है। इस पर गम्भीरता से विचार करना मानव मात्र का कर्तव्य है और यदि अहंकार में ही रहोगे, पूर्वाग्रह का त्याग नहीं करोगे तो नारी भी कह उठेगी-"गरब न करि हो संइभरि बाल, ता सरिषा अवर घणा रे भूपाल"। ये शब्द कवि नरपति नाल्ह ने राजमति द्वारा बीसलदेव के प्रति कहलाए। इसी प्रकार जयशंकर प्रसाद ने भी कामायनी में लिखा है। प्रसाद ही क्यों समस्त छायावादी कवियों ने भक्तिकालीन कवियों के विपरीत नारी की महत्ता एवं उसकी स्वतन्त्र सत्ता का गुणगान किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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