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________________ वाणी हमारे हृदय और मस्तिष्क को समान रूप से प्रभावित करती है। माँ की वाणी प्रभु की भाँति चिरकाल तक जन-जीवन को आलोकित करती रहती है। ___ आप झूठ मान बैठे ! जब भी प्रकट सत्य की स्थिति हो, स्वीकृति से कतराना क्यों? खैर, कुछ भी मानो। पर माँ अभिनव यूग की अधिनायिका है, पद दलितों का क्रान्ति-घोष और अबलों का शक्तिकोष है । मैंने देखी है उसके व्यक्तित्व की महिमा और महता। वह आलोक के सदृश होती है। उसकी महानता सर्वव्यापी होते हुए भी लौकिक-चक्षुत्रों से दृष्टिगोचर नहीं होती। वह तो प्रकाश और पवन के समान प्रत्येक को अंधकार हीन और प्राणमय बनाती रहती है। उसके प्रेम की एक झलक ही प्रातःकालीन सूर्य की तेजोमय प्रथम किरण की भांति नवीन सृष्टि और आलोक विकीर्ण कर देती है। सच्ची माँ के व्यक्तित्व में एक विलक्षणता है। संघर्षों से संघर्ष करने की वृत्ति और साथ ही साथ परिस्थितियों से जूझने का अदम्य साहस । विचार ही विचार का उद्भावक है। माँ के विचार ही पुत्र के विचार को जन्म देते हैं । विचार ही विचार का परिष्कार करता है एवं विचार ही विचार को काटता छांटता है। उनकी जीवन दृष्टि विमल है और विचार विमलाचार । जनजीवन को विमल विशदतम् नव संस्कार देती है। लेकिन आप...... "रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाय पर वचन नहीं जाई॥" प्रतिक्षण आपके मुखारविन्दु से यह ध्वनि मुखरित हो रही है कि"न त्वमेव माताच न पिता त्वमेव" । हे माँ ! तू ने मेरा क्या किया ? पर हमारा नाम तेज बहादुर हो या तेजी, हमारा हुलिया देखकर हमें बच्चन कौन मानेगा? अंग्रेज राज कवि डब्ल० वर्डसवर्थ ने कहा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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