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'विचार त्यागने की।" सेवा में जितनी निरहंकार भावना रहेगी उतनी सेवाकी कीमत बढ़ेगी। त्याग और सेवा ही भारतीय आदर्श है। स्वामी विवेकानन्द के इसी भाव को पुनः जमा देना चाहिए। बाकी आप ही
आप हीन हो जायेगा । मेरे द्वारा कथित एक-एक शब्द एक-एक बूंद के सदृश था। बूंद बूंद मिलकर ही सिन्धु का निर्माण होता है । मोती-मोती मिलकर माला तथा शब्द-शब्द मिलकर काव्य का निर्माण होता है। कहा तो संक्षेप में परन्तु सम्मुख बैठे व्यक्ति ने व्यंजना द्वारा ऐसा भावार्थ लगाया कि पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन गया । उसका जीवन परिवर्तित हो गया।
"उपकार तो फूल है, कांटा नहीं । वह तो प्यार है चांटा नहीं।" उपकार की दृष्टि से माँ के पश्चात् पिता एवं उसके बाद गुरु उपाध्याय का क्रम आता है। आपको शायद ऐसा लग रहा हो कि मैं झूठ कह रहा हूँ। ना रे ! ना !! धार्मिक ग्रन्थों के पृष्ठों को पलटिये । गलत धारणाएँ समाप्त हो जायेंगी। पूरी की पूरी रफू चक्कर जैसे सिपाही को देखकर चोर
उपाध्यायानांदशाचायं प्राचार्याणाम् शतं पिता। सहस्र तु पितृन् माता, गौरवेणातिरिच्यते ।।
(मनुस्मृति ६।१४५) गौरव की दृष्टि से दस उपाध्यायों के समकक्ष एक आचार्य है, सौ प्राचार्यों के बराबर एक पिता, और एक हजार पिताओं के बराबर कितने । हजार ! पूरे के पूरे एक हजार हां ! और इन एक हजार पिताओं के बराबर एक मां होती है। ____ मुसलमानों के धार्मिक ग्रन्थ 'कुरान शरीफ' में "हदीस शरीफ" ने कहा- हुजूर ने फरमाया है कि बाप की पेशानी चूमना और माँ के कदम चूमने से सादत हासिल होती है।" पिता के मस्तक का चुम्बन लेना और माँ के चरण कमल का चुम्बन लेने से इहलोक व परलोक दोनों में उसे भलाई मिलती है। बेंजमिन वेस्ट ने पुकार
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