SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ रस वीर रस का स्थायी भाव उत्साह जोरशोर से तैयारी के साथ सास व बहू में उद्दीप्त हो गया है और मैं रहा राजीव गांधी; संजय ने जैसे नशाबंदी के लिए भारतीय जनता को घसीटा वैसे ही मुझे भी राजीव गांधी की तरह बीच में घसीटा जा रहा है, जब कि मैं घसीटाराम नहीं हूँ और मैं तो पूर्व से हो इतना अधिक घसीटा जा चुका हूँ कि अब और सहन करना मेरी सम्पूर्ण कायिक क्षमताओं की सीमा के बाहर की बात है । राष्ट्र की सुप्रसिद्ध सास इन्दिरा जी ने जिस समय से मेनका बहू को एक सफदरजंग से विदाई अर्पित की हैं । उसी समय से मेरे माँ के मानस में भी यही इच्छा है कि यह भी अब शीघ्र ही किसी अन्य स्थान का अन्वेषण कर ले । नित्य के नूतन हल्दीघाटी युद्धों से मेरी माँ नख-शिख तक तंग आ चुकी है | 1 पत्नी देवी का “उत्तराध्ययन" कुछ विभिन्न कोटि का तथा विशिष्टता को ग्रहण किए चरम शिखर पर है । न मालूम कब से वह मेरे मायके को त्याग करने के लिए उत्सुक, बैचेन और तिलमिला रही है । पर मैं ही सास-बहू के मध्य “ब्रिज कारपोरेशन” रोल अदा करके तन-मन-वचन द्वारा दोनों में जान बूझकर झगड़ा करवा कर रोचक तमाशा देखने का शब्दातीत आनन्द ग्रहण कर रहा हूँ । क्योंकि - सासू जी ने मारी बिनणी, जबरों नाच नचावें रे यो कलियुग साफ सुणावे रे । बीकाणेरी हवा लागने सुपारी या चमके रे सासू जी तो एक सुणावे, बहू जी पांच सुणावे रे बोल्या बहू जी सुणो सास जी, "ये म्हाने नहीं सुहावे रे | भोली भोली सासू पर बहू जबरो जोर जमावे रे यो कलियुग साफ सुणावे रे | घृणा करोला बड़बड़ाट तो, भेट होस्याँ म्हें न्यारा रे । टिगट कटास्यां, इण घर सू म्हें थे बैठा तारा गिणज्यो रे चुप रेंवों थे सासू जी, नहीं तो मजा चखाऊँ रे सूधी साधी सासू जी ने बहू प्रख्या लाल बतावें रे यो कलियुग साफ सुणावे रे । , Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy