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________________ चाहे प्रार्थना कोई कितना भी करले, मगर प्रेम-सा पावन वन्दन नहीं है। जीवन विफल है जग में उसी का, जिसे प्रेम का कोई चिन्तन नहीं है। बिना प्रेम-दीप मन-मन्दिर अंधेरा, बिना प्रेम-जीवन, जीवन नहीं है। माँ से प्रेम भरा आशीष तो प्रत्येक को प्राप्त करना चाहिए। जैसे सूर्य को पाकर कमल खिल उठता है, परन्तु हिम कणों के बिना शोभा नहीं पाता । अरविन्द के प्रस्फुटित होने पर प्रोस-बिन्दु उसकी शोभा में अभिवृद्धि कर चार चाँद लगाते हैं, वैसे ही माँ का पुत्र रूपी कमल पर आशीष रूपी हिम-कण बरस जाये तो वह अद्भुत शोभा प्राप्त करता है और क / itak ऊवीकरण मफ्त में । जालिम व्यक्तियों को कमी नहीं। जालिमों को मैंने आज तक कभी फलते-फूलते नहीं देखा बल्कि उनका दम बुरी तरह से निकलते देखा है । कारण यहीकि उनमें आदर्श नहीं है और.. ''और जब आदर्श नहीं है तो इतने बड़े पाँच छ: फुट के आकार से क्या होगा? लम्बी-चौड़ी शरीराकृति से कुछ भी नहीं होगा । मानव-प्राकृति प्राप्त करना भी सतत् प्रवाहमान जीवन की एक विशिष्ट उपलब्धि है, किन्तु यदि आकृति के साथ प्रकृति का अभाव है तो उसकी उतनी कीमत नहीं जितनी प्रकृति समन्वित आकृति की है। यदि हमारे में आकृति के साथ प्रकृति का आगमन हो गया तो समझो प्राकृति धन्य-धन्य हो गई। ___ सद्धर्मप्रचारिणी साध्वी मणिप्रभा श्री ने सबल स्वर में उद्घोष किया है—"मानवाकृति की दुर्लभता का गान क्यों ? वह इसलिए कि इस आकृति को छोड़कर अन्य कोई प्राकृति श्रेष्ठ नहीं जिसके लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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