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तो परिवार का, गली का, शहर का फिर प्रान्त का और कहीं राष्ट्र का निर्माण होता है। माँ द्वारा दिया संस्कार ही कार्य करता है जिस प्रकार स्वाति नक्षत्र में वर्षा की बूदें सीप के मुख में गिरने से सच्चा मोती बन जाती है। बिन्दु विचारा बिन्दु । परन्तु बिन्दु से ही सिन्धु का निर्माण होता है।
अतः प्रत्येक माँ का उत्तरदायित्व है कि वह राष्ट्र के चरित्रनिर्माण में अपनी शक्ति का पूर्ण रूप से सहयोग दे । राष्ट्र की सबसे लघु इकाई व्यक्ति का प्राचार-विचार, रहन सहन, संस्कार सर्व सुसंस्कृत हों, अच्छे हों, उच्च हों और व्यवस्थित भी।
अनेक व्यक्तियों का यह कहना कि पन्ना धाई ने स्वयं के पुत्र को मरवाया पर राजा के पुत्र की रक्षा की। कैसी क्रूर हृदया थी।
जिस माता ने अपनी सन्तान की सुरक्षा की अवहेलना कर दी। पुत्र को पैदा करके भी उसे अपने स्नेह की छाया देने का साहस नहीं कर सकी । इस प्रकार के कठोर हृदय से युक्त नारी पन्ना धाई किसी भी मनुष्य की माँ कहलाने की योग्यता नहीं रखती। इस कार्य को अमानवीय और मातृस्नेह से रहित कार्य की संज्ञा दी है।
यह ममझना आपकी बहुत बड़ी गलती है। लगता है कि आप अभी तक गहराई में नहीं उतरे । यदि गहराई में उतर जायेंगे तो आप उस पन्ना धाई माँ के प्रति सहानुभूति का परिचय देंगे।
महाराणा संग्रामसिंह के देहावसान के पश्चात् उनके पुत्र विक्रमाजीत राज्य गद्दी पर आसीन हुए किन्तु अयोग्य होने के कारण मेवाड़ हितेच्छ सरदारों ने राजकुमार उदयसिंह के बालिग होने तक दासीपुत्र बनवीर को चित्तौड़ के राजसिंहासन पर बिठाया।
परन्तु बनवीर इससे उन्मत्त हो गया। उसकी तृष्णा ने जागत होकर भयंकर रूप धारण कर लिया। लोभ की वृद्धि, तृष्णा की अभिवृद्धि और पाशा की अधिकता ही व्यक्ति के विकास में बाधक बनती हैं। कहा भी है
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