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________________ पर मंजिल पैर तले है । वह इस विश्वास को समाप्त नहीं होने देती। क्योंकि वह जानती है कि बालक देवलोक से पाया है। वह छल-कपट से अनभिज्ञ है। __ कृष्ण भक्ति काव्य धारा के अग्रणी कवि सूरदास आदि अष्टछाप के कवियों ने भी श्री कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन में शैशव काल, यौवन काल और प्रौढ़ काल में शैशव काल को ही महत्त्वपूर्ण माना। उन्होंने मुख्यतः कृष्ण की बाल तथा l किशोर जीवन की लीलाओं का वर्णन ही किया है। इस कारण इनकी रचना में वात्सल्य तथा माधुर्य भाव का ही । अधिक प्रभावशाली चित्रण हो पाया है। इन पुष्टिमार्गीय कवियों के कृष्ण भक्ति के काव्य के वर्णन में कृष्ण की बाल-लीलों में यशोदा माँ के वात्सल्यपूर्ण हृदय की मनोरम झाँकी मिलती ___"मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायौ", "मैया कबहु बढ़ गी चोटी" आदि ऐसे अनेक पद हैं जो पाठक के मन को सहज ही स्पर्श कर लेते हैं। तृषित हृदय को रस-सिक्त करने में पूर्ण सफल हो जाते हैं । बच्चा जो भी कहता है,माँ सुन लेती है। निष्कपट भाव से अपने उदगारों को प्रगट करता है। अर्थात बालक शुद्ध और ब्रह्म रूप है। ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा ने तो यह भी कहा है कि यदि स्वर्ग जाने की इच्छा हो तो पहले बालक बनो। बालक तो निर्धन का सबसे बड़ा धन है। यह ब्रह्म रूप बालक भी इसी माँ से उत्पन्न हैं। पुष्प खिलता है कब और कैसे ? बीज का जब भूमि में पदार्पण होता है। जैसे विवाह मण्डप में वर-वधू का होता है। समय पर अंकुर फूट निकलते हैं । सभी उसके ब्रह्म स्वरूप को देखते हैं, जड़ को नहीं । जड़ कितना कष्ट पाती है। पुष्प को कोई कांटा न लगे इसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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