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चरम शिखर पर पहुँचाने वाली व उसके जीवन को मर्यादा की सरल फांसी में रखने वाली है। यही नहीं उसके जीवन मार्ग को आलोकित करने वाली प्रज्वलित प्रेम दीपिका है जो स्वयं उसको लौ में जलकर अपने पुत्र के जीवन को आलोकित करती है। वह जीवन को सुसज्जित भी करती है। जीवन के प्रत्येक चौराहे पर मार्ग दर्शाती है। साथ ही साथ लिप्सा, दानवीय वृत्ति, संग्रह खोरी आदि हृदयंगम प्रवृत्तियों को निकालती है और मनुष्यता की प्राण-प्रतिष्ठा करती है। ___ इसी के साथ मां प्रेम रूप है, और प्रेम माँ रूप । दोनों में सूरज और धूप की भांति अभेदता है। माँ का प्रेम भगवान की तरह ही अनिवर्चनीय है।
"जग में सब जान्यौ परै, अरु सब कहै कहाइ। पै जगदीश रु प्रेम यह दोऊ अकथ लखाइ।
(रसखान-रत्नावली) पृथ्वी के ऊपर प्रकाश का अवलोकन करने का सौभाग्य प्राप्त करने वाली जननी जीवन का पाया है। मकान का पाया नींव की ईट है, यदि नींव की ईट कमजोर है तो कंगूरा किस प्रकार से खड़ा हो सकेगा। यदि कारणवश खड़ा भी हो गया तो जल्द ही गिरने की संभावना हो जायेगी।
कंगूरे में यदि “सत्यं शिवं सुन्दरम्" का गुण विद्यमान करना है तो सर्वप्रथम नींव की ईट में यह गुण कूट कूटकर भरना नितान्त अपरिहार्य है। हमारे मानव जीवन की नींव माँ है। माँ के संस्कार कच्चे होंगे तो मानव जीवन का ऊर्श्विकरण होगा ही नहीं,कभी नहीं। जीवन का पाया ही शिथिल है तो मानव की प्रत्येक प्रवृत्ति दुष्ट्वृत्ति में परिवर्तित हो जायेगी। राष्ट्र के लिए अनहितकर होगी। भले ही मानव-समाजके मध्य ख्याति प्राप्त करले लेकिन अन्त में नींव की ईट
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