________________
१७
ममता ने मांगा मम लाल,
असंख्य है पर अनचाहे लाल-लाल । शुभ साक्षात्कार छिपा लाल,
प्रफुल्लित प्रस्फुटित पाके लाल-लाल । भद्रा माता का मन इससे विह्वल हो गया । धीरे-धीरे उसका मानस धर्म से न्यून हो गया और सतत् अर्हन्नक- अर्हन की ही रट लगाने लगी- भगवान के नाम की तरह । एक दिन प्रातः काल वह अर्हन्नक का नाम रटती हुई नगर के बाजारों में निकल पड़ी और अर्हन्नक‘अर्हन्नक अर्हन्तक अन्नक पुकारने लगी। सभी लोग राह चलते हुए साध्वी को इस प्रकार पुकारते हुए देख विचार में पड़ गए । इस साध्वी को क्या हुआ ? इस प्रकार बाजार में चिल्लाती हुई क्यों फिर रही है ? दिन भर खाना-पीना भूल कर भद्रा साध्वी सारे गांव में फिरी परन्तु कहीं भी अर्हन्तक को नहीं देखा न किसी ने उसका पता बतलाया । दूसरे दिन भी भद्रा इसी प्रकार ढूंढने निकली । लोगों ने उसे पागल समझ लिया । कोई उसकी हँसी उड़ाने लगा । कई उदण्ड लड़के उसका पीछा कर उसे सताने लगे ।
इस प्रकार भान भूली हुई भद्रा अर्हन्नकं का अधिक से अधिक स्मरण करने लगी और दुनियां उसे अधिकाधिक पागल मानने लगी । किन्तु पुत्र के लिए उसके हृदय में कितना प्रेम भरा था ? और इसी प्रेम के पीछे वह पागल बनी, इस बात को कौन जानता था ? और किसे जानने की आवश्यकता थी !
इसी स्थिति में कितने ही मास और वर्ष व्यतीत हो गए एक र अर्हन्नक संसार के विविध सुख भोग रहा है, दूसरी ओर भद्रा पागल बनी हुई उसे आँखों से देखने के लिए गली-गली भटक रही है । संसार की क्या विचित्रता है ? पुत्र और मां की रामायण ही विचित्र और अलग-अलग है ।
एक दिन अर्हन्नक हवेली के गवाक्ष में बैठा हुआ नगर-चर्या देख
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org