SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परन्तु विडम्बना यह है कि सूर्योदय से पूर्व ही गज का आगमन होता है वह और सरोवर में स्थित कमल-नाल को अपनी सूड से उखाड़ लेता है। इस प्रकार न कमल खिल सकता है और न ही कैदी भ्रमर उसमें बच पाता है। ___ अधिक से अधिक आजकल मानव की आयु औसतन सौ वर्ष की होती होगी। यदि हम उम्र की यह मान्यता स्वीकार करलें तो हिसाब से आधे अर्थात् पचास वर्ष तो रात्रि को सोने में बीत जाते हैं। शेष रहे पचास इसमें से साढ़े बारह वर्ष बचपन के तथा साढ़े बारह प्रौढ़ावस्था के व्यर्थ व्यतीत हो जाते हैं क्योंकि बाल्यकाल में बालक माँ के महत्व को नहीं समझता, उसके स्वरूप से अनभिज्ञ रहता है और वृद्धावस्था का आगमन होने तक या तो माँ का स्वर्गवास हो जाता है। यदि नहीं भी हुआ तो सब कुछ जानते हुए भी अशक्ति के कारण मानव अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर सकता। अब आयु बची पच्चीस वर्ष। इन वर्षो में भी व्यक्ति माँ हेतु कुछ करता है ? नहीं । यौवनावस्था में वह नारी को मात्र वासना की पूर्ति का हेतु समझता है। वासना का भूत ऐसा सवार होता है कि वह बिल्कुल अन्धा हो जाता है और इनसे समय बचा तो 'शरीरम् व्याधि मंदिरम्' । प्राधि, व्याधि या उपाधियो से जूझता रहता है और परिणाम "बचपन सुबह का, और दोपहरी समझो जवानी। सांझ ज्यू ढलता जर्जर बुढापा, रात को खतम तेरी कहानी ।। प्रोसवत् क्षण-क्षण जीवन बीतता चला जाता है फिर बताइये कि मानव अपने जीवन से क्या लाभ उठाता है। माँ ने आपके प्रति जो उपकार किये हैं आप उनसे कब ऋण मुक्त होंगे। आपको अपने कर्तव्य का पालन करना होगा। यदि नहीं तो शरीर क्षणभंगुर है जो देखते देखते नष्ट होकर खाक में मिल जायेगा। अतः कर्तव्य के प्रति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy