SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4. धए य अबंधए य अहवा सत्तविहगा एगविहगा अविहबंधए य अबंधगा य अहवा सत्तविहगा एगविगा अविहबंधगा य अबंधए य अह्वा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अविहबंधगा य अबंधगा य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छबिहबंधगे य अबंधए य अहबा सत्तविहगा एगविहबंधगा य छविबंधए य अबंधगा य अहवा सनविहबंधगा य एगविगा छबिहागा अबंधए य अहवा सनविहबंधगा य एगवि०गा छविहगा अचंधगा य अहवा सत्तविहवंधगा य एगविमा अट्ठविवंधगे य छविधए य अचं. धए य अहवा सनविहबंधगा य एगविगा अविहबंधए य छविहबंधए य अबंधगा य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहगा अट्टविहबंधए य छविबंधगा य अबंधए य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविगा अविधवंधए य छविहवैधगा य अचंधगा य अहवा सत्तविगा एगवि०गा अविमा उत्रिहबंधगे य अबंधए य अहवा सनविहबंधगा य एगपिळगा | अट्टविहगा छविहबंधगे य अचंधगा य अह्वा सत्तविगा एगविहगा अट्ठवि०गा छविहबंधगा य अवधए य अह्वा सत्तविहबंधमा य एगगा अट्टविगा छविहगा अबंधगा य, एवं एते अट्ठभंगा, सवेवि मिलिया सत्तावीसं भंगा भवंति, एवं मणूसाणवि एते चेव सत्तावीसं भंगा भाणितव्वा, एवं मुसावायविरयस्स जाच मायामोसविरयस्स, जीवस्स य मणुसम्स णं भंते ! जीवे कति कम्मपगडीतो पंधति, गो, सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा छविहवंधए वा एगवि०गा अबंधए, वा मिच्छादसणसाइविरएर्ण भंते नेहए कति कम्मपगडीतो बंधति?, गो! मत्तविहबंधए वा अविगे जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए. मणसे जहा जीये. वाणमंतरजोडसितवेमाणिते जहा नेरडते. मिच्छादं. सणसहविरया णं भंते ! जीवा कति कम्मपगडीत, बंधति?, गो! ते चेव सत्तावीसं भंगा भाणितव्वा, मिच्छादसणसविस्या णं भंते ! नेरइया कति कम्मपगडीतो बंधति?, गो सब्वेवि ताव होज सत्तविहवंधगा अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगेय अहबा सत्तविहबंधगा य अडविगा, एवं जाव वेमाणिया, णवरं मणूसाणं जहा जीवाणं ।२८७। पाणातिवायविरयस्स णं भंते जीवस्स किं आरंभिया किरिया कजति जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजति?, गो० पाणातिवायविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कजति सिय नो कमति, पाणातिवायविरयस्स भंते! जीवस्स परिग्गहिया किरिया कजति?.गोणो इणट्टे समहे, पाणातिवायविरयस्सण भते! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कति?. गो० ! सिय कजति सिय नो कजति, पाणातिपातविरयस्स णं भंते ! जीवस्स अपञ्चक्खाणवत्तिया किरिया कज्जति ?, गो० णो इणढे समढे, मिच्छादसणवत्तियाए पुच्छा, गोणो इणट्टे समढे, एवं पाणातिपातविरयस्स मणूसस्सवि, एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य, मिच्छादसणसविस्यस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया क. जाव मिच्छा. दसणवत्तिया क.?, गो! मिच्छादसणसाइविरतस्स जीवस्स आरंभिया सिय क० सिय नो क० एवं जाव अपचक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया न क०, मिच्छांदसणसाइविर - यस्स णं भंते ! नेरइयस्स किं आरंभिया क. जाच मिच्छादसणवत्तिया क.?, गो! आरंभिया क० जाव अपञ्चक्खाणकिरियावि क०, मिच्छादसणवत्तिया नो क०, एवं जाव थणि - यकुमारस्स, मिच्छादसणसाइविरयस्स णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा, गो०! आरंभिया क० जाव मायावत्तिया क० अपञ्चक्खाणकि० सिय क सिय नोक०, मिच्छादसणवत्तिया नोक०.मणूसस्स जहा जीवस्स, वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहानेरइयस्स, एतासि णं भंते! आरंभियाणं जाव मिच्छादसणवत्तियाण य कतरे ?, गो! सबत्यो. वाओ मिच्छादसणवनियाओ अपचक्खाण, विसे० परिग्गहियातो विसे० आरंभियातो किरियातो विसे० मायावत्तियातो विसेसाहियातो ।२८८॥ किरियापर्य २२॥ कति पगडी कह बंधति कइहिवि ठाणेहिं बंधए जीयो। कति वेदेह य पयडी अणुभावो कइविहो कस्स ॥२१७॥ कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पं०?, गो०! अट्ट कम्मपगडीओ पं० त०- णाणावरणिज उयं नाम गोयं अंतराइयं, नेरइयाणं भंते ! कइ कम्मपगडीओ पं०?, गो! एवं चेव. एवं जाव वेमाणियाण । २८९। कहणं भंते ! जीवे अट्ठ कम्मपगडीतो बंधति?. गोनाणावरणिजस्स कम्मस्स उदएणं दरिसणावरणिज कम्म णियच्छति दसणावरणिजस्स कम्मस्स उदएणं दसणमोहणिनं कम्मं णियच्छति दसणमोह णिजस्स कम्मम्स उदएणं मिच्छतं नियच्छति मिच्छत्तेणं उदिएणं गो एवं खलु जीवो अट्ट कम्मपगडीतो बंधति, कहणं भंते! नेरइए अट्ठ कम्मपगडीओ बंधति?, गो एवं चेत्र, एवं जाव चेमाणिए, कहणं भंते ! जीवा अट्ट कम्मपगडीतो बंधति ?, गो०! एवं चेब, जाव चेमाणिया।२९०। जीवे णं भंते ! णाणावरणिज कम्म कतिहिं ठाणेहिं बंधति?, गो! दोहि ठाणेहिं तं०-रागेण य दोसेण य, रागे दुबिहे पं० तं-माया य लोभे य, दोसे दुविधे ५००-कोहे यमाणे य, इचेतेहिं चउहिं ठाणेहिं बिरितोवग्गहिएहिं एवं खलु जीवे णाणावरणिज कम्मं बंधति, एवं नेरतिते जाव वेमाणिते, जीवा णं भंते ! णाणावरणिज कम्म कतिहिं ठाणेहिं बंधति?, गो०! दोहिं ठाणेहि एवं चेष, एवं नेरदया, जाव वेमाणिया, एवं दसणावरणिज जाव अंतराइयं, एवं एते एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा । २९१। जीवे णं भंते ! णाणावरणिज कम्मं वेदेति?, गो०! अत्थेगहए वेदेति अत्यगइए नो वेएइ, नेरइए णं ७५८ प्रज्ञापना, पद-३ मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003915
Book TitleAagam Manjusha 15 Uvangsuttam Mool 04 Pannavanaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages107
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy