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________________ याई, चउरिदियपजत्तए णं भंते! पुच्छा, गो०! जह• अंतो उक्को० संखेजा मासा, पंचिंदियपजत्तए णं भंते ! पंचिंदियपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गो० जहः अंनो. उक्को सागरोचमसयपहत्तं । दारं ३।२३४ । सकाइए णं भंते ! सकाइएत्ति कालतो केवचिरं होइ?, गो०! सकाइए दुपिहे ५००-अणाइए वा अपजवसिए अणाइए वा सपजबसिए, पुढवीकाइए णं पुच्छा, गो० ! जह• अंतो० उक्को० असंखेनं कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालतो खेत्ततो असंखेजा लोगा, एवं आउनेउवाउकाइयावि, वणस्सइकाइयाणं पुच्छा, गो० जह• अंतो उक्को० अणंतं कालं अणंताओ उस्सप्पिणीअवसप्पिणिओ कालओ खेत्तो अर्णता लोगा असंखेजा पुग्गलपरियट्टा नेणं पुग्गलपस्विट्टा आवलियाए असंखेजइभागो, तसकाइए णं भंते ! पुच्छा, गो०! जह• अंतो० उक्को दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमभहियाई, अकाइए णं भंते ! पुच्छा, गो० अकाइए सादिए अपजवसिए, सकाइयअपजत्तए णं पुच्छा, गो०! जह• उक्को अंतो०, एवं जाव तसकाइयअपजत्तए, सकाइयपजत्तए पुच्छा, गो० ! जह• अंतो० उक्को सागरोजमसयपुहुत्तं सातिरेग, पुढवीकाइयपजत्तए पुच्छा, गो० जह० अंतो• उक्को संखेजाई वाससहस्साई, एवं आऊवि, तेउकाइयपजत्तए पुच्छा, गो०! जह: अंतो उक्को संखेजाई राईदियाई, बाउकाइयपजत्तए णं पुच्छा, गो०! जह• अंतो० उक्को० संखेजाई वाससहस्साई, वणस्सइकाइयपजत्तए पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० संखेजवाससहस्साई, तसकाइयपजत्तए पुच्छा, गो०! जह• अंतो० उको सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेगं । दारं ४।२३५। सुहुमे णं भंते ! मुहुमेत्ति कालतो केवचिरं होति?, गो जह• अंतो उक्को असंखेज कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीतो कालतो खेत्ततो असंखेजा लोगा, सुहुमपुढवीकाइते सुहुमाउ० मुहुमतेउ० मुहुमवाउ० सुहमवणफइकाइते सुहमनिगोदेवि खेज कार्ल असंखिजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीतो कालतो खेत्ततो असंखेजा लोगा, मुहुमे णं भंते! अपजत्तएत्ति पुच्छा, गो! जह० उ० अंतोमुहुर्त, पुढवीआउतेउवाउवणफइकाइयाण य एवं चेच, पज्जत्तयाणवि एवं चेव जहा ओहियाणं, बादरे ण मंते ! वादरेत्ति कालतो केवचिरं होति ?, गो०! जह• अंतो० उक्को असंखेज कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीतो कालओ खेत्तओ अंगुलस्स असंखेजतिभागं, बादरपुढबीकाइए णं भंते ! पुच्छा, गो०! जह• अंतो० उको सत्तरिसागरोषमकोडाकोडीतो, एवं बादराउकाइएवि जाव बादरतेउकाइएवि पादरखाउकाइएवि, वादरवणप्फडकाइते बादर० पुच्छा, गो० जह० अंतो० उको असंखेनं कालं जाव खेतओ अंगुलस्स असंखेजतिभागं, पत्तेयसरीवादरवणफइकाइए णं भंते ! पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीतो, निगोदे णं भंते ! निगोएत्ति केवचिरं होति?, गो०! जह• अंतो० उक्को अर्णताओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालतो खेत्ततो अड्ढाइजा पोग्गलपरियट्टा, बादरनिगोदे णं भंते ! चादर० पुच्छा, गो०! जह• अंतो० उक्को सत्तरि सागरोचमकोडा. कोडीतो, वादरतसकाइया णं भंते ! बादरतसकाइयत्तिकालओ केवचिरं होइ?, गो० जह• अंतो० उक्को० दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमभहियाई, एतेसिं चेव अपज्जत्तगा सवेवि जह उक्को० अंतो०, बादरपजते णं भंते ! वादरपजत्त० पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को सागरोचमसतपुहुतं सातिरेग, बादरपुढवीकाइयपज्जत्तए णं भंते ! चादर० पुच्छा, गो०! जह अंतो० उक्को संखिज्जाई वाससहस्साई, एवं आउकाइएवि, तेउकाइयपजत्तए णं भंते ! तेउकाइयपज० पुच्छा, गो० जह• अंतो० उक्को संखिजाईराईदियाई, बाउकाइ. यवणस्सइकाइयपत्तेयसरीरवादरवणफइकाइते पुच्छा, गो० जह• अंतो० उक्को संखेजाई वाससहस्साई, निगोयपजत्तते० बादरनिगोदपजत्तएत्ति पुच्छा, गो! दोहवि जह अंतो उक्को अंतो०, बादरतसकाइयपजत्तए णं भंते ! वादस्तसकाइयपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होति?, गो० जह० अंतो० उक्को सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेगं । दारं ५ 1२३६। सजोगीण भंते ! सजोगित्तिकाल०१.गो० सजोगी विहे पं० त०-अणादीए वा अपज्जवसिते अणादीए वा सपज्जवसिते, मणजोगीण भंते ! मणजोगि | गोजएकं समय उको अंतो०,एवं वइजोगीवि, कायजोगीणं भंते ! काल०?, गो०! जह• अंतो उको० वणप्फइकालो, अजोगीण भंते ! अजोगित्ति कालओ केबचिरं होति?, गो! सादीए अपज्जवसिते । दारं ६।२३७। सवेदए णं भंते ! सवेदएत्ति०, गो० सवेदए तिविघे पं० त० अणादीए वा अपजवसिते अणादीए वा सपज्जवसिए सादीए वा सपजवसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपजवसिए से जह० अंतो० उको० अर्णतं कालं अर्णताओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीतो कालतो खेत्ततो अवड्ढं पोग्गलपरियट्ट देसूर्ण, इत्यिवेदे णं भंते ! इत्विवेदेत्ति काल०?, गो! एगेणं आदेसेणं जहरू एक समयं उक्को० दसुत्तरं पलिओवमसतं पुचकोडीपुहुत्तमम्भहियं एगेणं आदेसेणं जह० एर्ग समयं उक्को अट्ठारस पलितोचमाई पुत्वकोडीपुहुत्तममहिवाई एगेणं आदेसेणं जह एग समय उक्को चउद्दस पलिओबमाई पुचकोडीपुहुत्तमम्भहियाई एगेणं आदेसेणं जह० एग समयं उक्को पलिओवमसतं पुचकोडीपुडुत्तमभहियं एगेणं आदेसेणं जह० एर्ग समयं उक्को० पलितोवमपुडुत्तं पुषकोडीपुडुत्तमम्भहियं, पुरिसवेदे णं भंते ! पुरिसवेदेत्ति०?, गो० जह० अंतो० उक्को सागरोवमसत७४६ प्रज्ञापना, पद-२८ मुनि दीपरत्नसागर DATOut
SR No.003915
Book TitleAagam Manjusha 15 Uvangsuttam Mool 04 Pannavanaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages107
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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