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________________ 44PR4 T किमादीया किंपचहा किंसठिया किंपनवसिया ?, गो० भासा णं जीवादीया सरीरप्पभवा वजसंठिया लोगतपजवसिया १०. भासा को य पभवति कतिहि व समएहि भासती भासं। भासा कतिप्पयारा कति वा भासा अणुमया उ॥१९२॥ सरीरप्पभवा भासा दोहि य समएहि भासती भासं। भासा चउप्पगारा दोष्णि य भासा अणुमता उ ॥१९३।। कतिविहा णं भंते ! भासा पं०?, गो०! दुविहा भासा पं० त०-पजत्तिया य अपवत्तिया य, फजत्तिया णं मंते! भासा कतिविहा पं०१, गो०! दुविहा पं० त०- सच्चा य मोसा य, सच्चा णं भंते ! भासा पजत्तिया कतिविहा पं०?, गो० ! दसविहा पं० त० जणवयसचा सम्मय० ठवण नामरूव० पडुच० ववहार भाव० जोग० ओवम्मसबा, 'जणवय संमत ठवणा नामे रुवे पडुच्चसच्चे या ववहार भाव जोगे दसमे ओवम्मसचे य ॥१९४॥ मोसा ण मंते! भासा पजत्तिया कतिविहा पं०१, गो०! दसविहा पं० त०-कोहणिस्सिया माणनिस्सिया माया लोह पेज० दोस० हास० भय० अक्खाइया० उपघाइयनिस्सिया 'कोहे माणे माया लोभे पिजे तहेब दोसे या हास भए अक्खाइय उवघाइयणिस्सिया इसमा ॥१९५॥ अपजत्तिया णं भंते! कइविहा भासा पं०?, गो० दुविहा पं० सं०-प्सचामोसा असञ्चामोसा य, सचामोसा णं मंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पं०१, गो०! दसविहा पं० त०- उप्पणमिस्सिया विगतमिस्सिया उप्पण्णविगत जीव. अजीव जीवाजीव० अर्णत० परित्त० अदा० अबदामिस्सिया, असचामोसाण मंत! भासा अपना अपजतिया कहचिढ़ा पं०१, गो! दुवालसचिहा पं० २०. आर्मतणि आणमणी जायणि तह पुच्छणी य पणवणी। पञ्चक्रवाणीभासा भासा इच्छाणुलोमा य ॥१९६॥ अणभिग्गहिया भासा भासा य अभिग्गहमि बोद्धया। संसयकरणी भासा वोगड अधोगडा चेव ॥१९७॥१६५। जीवाणं मते! किं मासगा अभासगा?, गो० जीवा भासगावि अभासगावि, से केणतुणं भंते ! एवं बुञ्चति-जीवा भासगावि अभासगावि?, गो०! जीवा दुविहा पं० सं०-संसारसमावण्णगा य असंसारसमावणगा य, वत्थ गंजे ते असंसारसमावण्णगा ते णं सिदा, सिद्धा णं अभासगा, तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णमा ते दुबिहा पं० २०. सेलेसीपडिवण्णमा य असेलेसीपडिवण्णगा य, तत्य णं जे ते सेलेसीपडिवण्णमा ते णं अभासगा, तत्व णं जे ते असेलेसीपडिवण्णगा ते दुविहा पं० त०- एगिदिया य अणेगिंदिया य, तत्थ णे जे ते एगिदिया ते गं अमासगा, तत्थ णं जे ते अणेगेंदिया ते दुविहा पं० त०-पजत्तगा य अपजत्तगा य, तत्वणं जे ते अपज्जत्तगा तेणं अभासगा, तत्य णं जे ते पज्जत्तगा ते णं भासगा, से एएणतुणं गो०! एवं वुचति-जीवा मासगावि अमासगावि, नेरइयाण मंते! किं भासगा अमासगा?, गो० नेरइया भासगावि अभासगावि, से केणडेणं भंते ! एवं वुचति-नेरइया भासगावि अमासगावि, गो०! नेरहया दुविहा पं० २०-पजत्तगा य अपजत्तगा य, तत्थ णं जे ते अपजत्तगा ते णं अभासगा, तत्य णं जे ते फजत्तमा ते णं मासगा, से एएणद्वेणं गो०! एवं युवति-नेरइया भासगावि अभासगावि, एवं एगिंदियवज्जाणं निरंतर भाणियौ । १६६। कतिणं भंते ! भासज्जाया पं०१, गो! चतारि भासजाया पं० २०. सचमेर्ग भासज्जायं चितिय मोसं ततिय सबामोसं चउत्थं असचामोर्स, जीवा र्ण भंते ! किं सर्व भासं भासंति मोसं० सचामोसं असच्चामोसं०१, गो० जीचा सर्चपि भासं भासंति मोर्सपि० सचामोसपि० असच्चामोसपि०, नेरइया णं मंते ! किं सर्च भासं भासंति जाय असञ्चामोसंपि भासं भासंति?, गो०! नेरइया णं सर्चपि भास भासंति जाव असच्चामोसंपि०, एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा, बेईदियतेईदियचउरिदिया य नो सर्च नो मोसं नो सचामोसं असच्चामोसं०, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! किं सचं भास जाव किं असबामोसं०१, गो०! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णो सर्च भासं भासंति णो मोसं० णो सच्चामोसं० एणं असचामोसं०, णण्णत्य सिक्खापुरगं उत्तरगुणलदि बा पडुच सचंपि भासं भासति मोसंपि० सच्चामोसंपि० असचामोसंपि०, मणुस्सा जाच वेमाणिया एते जहा जीवा तहा भाणियवा।१६७। जीवे णं भंते ! जातिं दधाति भासत्ताए निष्हति ताई किं ठियाई गेहति अठियाई गेहति ?, गोठियाई गिव्हति नो अठियाई गिण्हति, जाई मंते ! ठियाई गिण्हति ताई किं दबतो गिण्हति खेत्ततो गिण्हति कालतो गिण्हति भावतो गिण्हति?, गो०! दवओवि गिण्हति खेत्तओवि० कालओवि० आवमोवि गिण्हति, जातिं भंते! दरओ गेण्हति ताई किं एगपदेसिताई गिरोहति दुपदेसियाइं जाय अणंतपदेसियाई गेण्हति?, गो०! नो एगपदेसियाइं जाव नो असंखिजपदेसियाई, अर्णतपदेसियाई गेहति, जाई खेत्तजओ गेण्हति ताई कि एगपएसोगाढाई गेण्हति दुपएसोगाढाइं गेण्हति जाव असंखेजपएसोगाढाई गेहति ?, गो० नो एगपएसोगाढाई जाव नो संखेजपएसोगाढाई०, असंखेजपएसोगाढाई गेहति, जाई कालतो गेण्हति ताई किं एगसमयठिइयाई दुसमयठिइयाई जाव असंखिजसमयठिड्याई गेहति ?, गो०! एगसमयठितियाइंपि दुसमयठितियाइंपि जाव असंखेजसमयठितियाइंपि गेहति, जाई भावतो गेहति ताई किं वण्णमंताई गंधमंताई रसमंताई फासमंताई गेण्हति ?, गो० अण्णमंताईपि जाव फासमंताईपि गेहति, जाई भावओ वण्णमताईपि ताई किं एगवण्णाई जाच पंचवण्णाइं गेहति !, गो! गहणदबाई पहुच एगवण्णाईपि जाप पंचवण्णाईपि गेहति, सजग्गहणं पडुच णियमा पंचवण्णाई गेहति, तं०. कालाई नीलाई लोहियाई हालिदाई सुकिलाई, जाई वणतो कालाई गेहति ताई किं एगगुणकालाई जाव अणंतगुणकालाई गिण्हति ?, गो! एगगुणकालाइंपि जाव अणंतगुणकालाइंपि गेण्हति, एवं जाव मुकिरहाइंपि, जाई भावतो गंधमंताई (१८१) ७२४ प्रज्ञापना, परकश मुनि दीपरनसागर
SR No.003915
Book TitleAagam Manjusha 15 Uvangsuttam Mool 04 Pannavanaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages107
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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