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________________ है, बकरी। और यों कहकर वहां से चला गया। लड़के ने सोचा, मां ने तो कहा था यह भैंस है, पर वह आदमी इसे बकरी कह गया। शायद उस आदमी को दृष्टिभ्रम हुआ। वह फिर बोलने लगा, भैंस ले लो भैंस। इतने में दूसरा ठग पहुंचा और बोला, वाह, दुनिया में पागल तो बहुत देखे, मगर ऐसा नहीं। भाई! तुमने तो कमाल कर दिया, बकरी को भैंस बना दिया। पर तुम्हारे बनाने से भैंस थोड़ीबनती है! लड़का बोला, साहब! यह तो भैंस है। ठग बोला, भैंस है तो कहता रह भैंस। सुबह से शाम तक कहता रह। लड़के का माथा ठनक गया। पर फिर भी जिसे वह बचपन से भैंस कहता आ रहा था, उसे इतना जल्दी बकरी कैसे कह दे। __ थोड़ी देर में तीसरा ठग उसके पास से गुजरते हुए बोला, 'अरे देखो रे लोगो! यह कैसा उल्लु बनाता है लोगों को, जो यह बकरी को भैंस कहकर बेचना चाहता है। ए लड़के! इसे बकरी कहो, बकरी। इस बार लड़के को यह बात जच गयी कि वह भैंस नहीं, बकरी ही है। अतः वह बोलने लगा, बकरी ले लो, बकरी, पांच सौ रुपये में बकरी। चौथा ठग पहुंचा उसके पास। उसने कहा, भाई! यह बकरी है और बकरी तो बकरी के भाव बिकेगी। तुम बेच तो रहे हो बकरी और भाव बता रहे हो भैंस के। ये लो पचास रुपये। बकरी इससे ज्यादा भाव में नहीं बिकेगी। जैसे-तैसे समझा-बुझाकर ठगों ने उस लड़के से भैंस ठग ली। वह घर गया तो मां को उलाहने देने लगा कि तूने मुझे बाजार में बेइज्जत करवा दिया। तू मुझे पहले ही बता देती कि वह भैंस नहीं बकरी है। मां ने जब सारा किस्सा सुना तो रो पड़ी। जब लड़के को यह अहसास हुआ कि वह वास्तव में ठगा गया है, तो उसने अपनी भैंस के पैसे वसूल करवाने की अपने शिक्षक से विनती की। शिक्षक ने योजना बनाई। उसने अपने तीन-चार विद्यार्थियों का सहयोग लिया। योजना के अनुसार दो लड़कों ने यह पता किया कि उन ठगों के नाम क्या हैं और उन्होंने अपने झोले में क्या-क्या चीजें डाल रखी है। एक लड़के ने साधु का वेश बनाया और उन ठगों के पास जाकर उन्हें नाम से संबोधित करते हुए पूछा, यहां कुआ कहां है? ठगों को उस साधु के मुंह से अपने नाम सुनकर आश्चर्य हुआ। पूछा, आप हमारे नाम कैसे जान गये। बोला, गुरु-कृपा से। हमारे गुरु बड़े अन्तर्यामी हैं, चमत्कारी हैं। वे जिसे आशीर्वाद दे देते हैं, उसका बेड़ा पार समझो। ठगों ने उस साधु को उसके गुरु के पास ले जाने के लिए निवेदन किया। साधु उन्हें ले गया अपने गुरु के पास। गुरु के रुप में उसका अध्यापक साधु-वेश में बैठा था। शरीर संसार और समाधि 20.. -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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