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________________ कांच को सूरज की ओर करके देखो, उसमें भी बिजली पैदा हो जाएगी। अगर उसके झलके को किसी दूसरे व्यक्ति की आंखों पर गिरा दो तो वह क्षण भर में आन्दोलित हो जाएगा। वास्तव में सबल होने का नाम योग है। सबल होना चारों ओर से संयत होना है और संयम-से-भरा जीवन अस्तित्व की सबसे बड़ी उपलब्धि है। निर्बल का पुरुषार्थ तो अंधेर से लड़ना है। उसे जो भी सूझता है वह अन्धे का सूझना है। कैसा व्यंग्य है यह कि अन्धे को अंधेरे में दूर की सूझती है। यह चित्त राम से आन्दोलित होता है, तब निश्चित है कि मार उसके समाने निष्प्रभ हो चुका है। राम के सामन मार की तूती कम बजती है। जीवन की गंध तो दोनों ही हैं- मार भी राम भी। मगर राम जीवन की सुगन्ध है और पार जीवन की दुर्गन्ध। जो दुर्बल है उस पर मार हावी है। दुर्बल की चेतना मार की कथरी में दुबकी रहती है। सबल योगी है और सबल होने की कला का नाम योग है। इसलिए यह कभी न समझना कि स्त्रियां खराब है, नरक का द्वार है; क्योंकि यह भूल सदियों-सदियों से होती रही है। पुरुष ने अपनी निर्बलता को पहचाना नहीं; इसलिए उसने स्त्री को मोक्ष में बाधा माना। मनुष्य की इस भूल ने नारी जाति पर बहुत बड़ा आपकार किया है। चाहे कोई ऋषि हो या शास्त्र, जिसने भी ऐसा कहने की हिम्मत की उसने मानवीय कमजोरी को नहीं पहचाना। नारी जाति के लिए वह एक अक्षम्य अपराध है । मोक्ष या साधना के लिए न कभी पुरुष बाधक बनता है और न स्त्री । बाधक स्वयं की कमजोरी है, स्वयं की निर्बलता है और स्वयं की मार है। स्वयं की कमजोरी छिपाने के लिए यदि कोई व्यक्ति स्त्री के माथे पर दोष मांडने का दुस्साहस करता है तो वह वास्तव में उसी यान में बम विस्फोट करने की धमकी दे रहा है जिसमें वह खुद चढ़ा / बैठा है। मेरे पास कई लोग जो आते है, ध्यान की कला सीखने के लिए, समाधि के आकाश में उड़ने के लिए; सब आप बीती सुनाते है । उनकी आत्म-कथा सुनो तो बड़ी हंसी आती है। कल ही एक सज्जन कह रहे थे कि मैने मंदिर जाना बंद कर दिया। मैने उनसे इसका कारण पूछा और उन्होंने सही-सही कारण बतला दिया। झूठ मुझे पसंद नहीं है यह बात नहीं, आदमी स्वयं झूठ बोलने की मेरे सामने आत्म-प्रवंचना कर नहीं पायेग के सामने भी अगर तथ्य छिपाओगे तो फिर सच्चाई का बयान कहां करोगे? यहां तो किये का पछतावा होना ही चाहिये। मेरी दृष्टि में कन्फेसन (आत्म-स्वीकृति) का बड़ा मूल्य है। संसार और समाधि Jain Education International 102 For Personal & Private Use Only - चन्द्रप्रभ www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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