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________________ सत्य के रास्ते पर यात्रा तो तब होती है, जब व्यक्ति चित्त से कुछ ऊपर उठे; वह अचित बने, अचल बने। पर हां, योग केवल अचित्त होने से सधे, ऐसी बात नहीं है। स-चित्तता भी चेतना के द्वार पर दस्तक बन सकती है। मोटे तौर पर चित्त को दो ही संभावनाएं हैं। या तो वह मार-से-कम्पित होता है, या राम-से-आन्दोलित। चित्त, मार और राम इन दो में से किसी एक को चुनता है। प्रशान्त चित्त होना समाधि में प्रवेश करने का द्वार है। मार से वासना को ईंधन मिलता है। राम तो मुक्ति की झंकृति है। चित्त का राम होना उसका विराम नहीं है। यह उसका अन्तिम पड़ाव नहीं है। वह तो चित्त की प्रखर ऊर्जा को परमात्म-दर्शन की राह पर संयोजित करना मात्र है। चित्त का विराम दमन है और दमन भूकम्प की पूर्व संभावित तैयारी है। अगर चित्त राम से आन्दोलित हो उठे तो साधना को साधने में और अपने अन्तर्यामी को पहचानने में चित्त से बड़ा मददगार अन्य कोई नहीं है। जीवन की टूटी-बौखलाई टांगो को वही चित्त बैशाखी बनकर आगे बढ़ने में जबर्दस्त मददगार हो जाता है। जो नौका अब तक हमें भटकाये हुए थी, वही किनारा पाने में सहायक हो जाती है। ___अगर चूक गये राम-से-आन्दोलित होने से, तो फंसेंगे मार के चंगुल में। मार अगर प्रभावी हो गया, तो उसकी मिठास-चिपकी छुरी को चाटना पड़ेगा। छुरी पर लगी चासनी को खाना शक्कर के नाम पर जहर पीना है। यह अमृत के नाम पर विषपान है। _____मार तो नशे की गोली है। जिसने खायी, उसकी दशा बिल्कुल हीरोइन-पियक्कड़ की तरह होगी। अगर हीरोइन ली, तो जीवन की गोद में मौत का खतरा है; अगर न पी, तो तड़फेंगे, झुलसेंगे। यह तो प्याले में उभरात तूफान है। ___ पहले समझें राम और मार को। 'मार' का अर्थ चांटा लगाना नहीं है। मार राम की उल्टी शब्द 'संयोजना है। राम की संधि तोड़ो। र, अ, म, यह राम का अक्षर-संधि विच्छेद है। इसे पलटो। अब अक्षर-रचना हुई म, अ, । म से अ की संधि हुई तो मा बना। मा के साथ र की संयोजना ही मार है। यह बिल्कुल राम का उल्टा है। इन दो शब्दों को अगर ध्यान से समझ लिया, तो शास्त्रों की एक बड़ी खेप आपकी समझ में आ गयी। मार काम-वासना का देवता है। किसी को किसी के चंगुल में फंसा देना, यही मार का काम है। मार विपरीत का आकर्षण है। दो विपरीत धर्मों को एक सूत्र में बांधना ही मार का संसार और समाधि 100 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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