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अपरिग्रह
संचित कर असीम धन क्यों हो उन्मन ? शोषित मनुजों का
श्राप है, अनीति से संचित धन
__ पाप है। कल से अपरिचय पीढ़ियों के लिए संचय; कर्म - तूलि निष्प्रभ नहीं है जब अशुभ कर्म उदय में आयेंगे, सम्पति के कीर्ति - कलश बिना गिराये ही गिर जायेंगे।
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