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तब और अब
तब
चीर - हरणकर्ता दुःशासन के प्रयत्न . हो गए थे निरर्थक कृष्ण रक्षा - कवच लोक - मंगल का प्रहरी।
अब
भक्षकों के साथ जुड़े रक्षक दिन के प्रकाश में द्रोपदियों का होता है चीर - हरण, कहाँ है शासन, कहाँ है शरण ?
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