________________
पहीं के पहीं
चलता रहता है बन्धी लकीर में जीनेवाला
वर्तु लाकार कोल्हू के बैल की भाँति ।
वापस आ पहुँचता है लम्बी यात्रा के बाद भी वहीं के वहीं प्रारम्भ की
जहाँ से यात्रा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org