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विलक्षण नाटक
संसार के रंगमंच पर चिर क्षणों से देख रहा हूँ एक विचित्र नाटक
नृत्य करा रहा है कर्म - नायक जीव - नट को कहलाता है कभी राजा, कभी रंक; कभी साधु, कभी पंडित; है कोई ऐसा वेश पहना न हो छोड़ा न हो इसने चौरासी लाख योनियों में।
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