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नाविक लम्बी है यात्रा सागर विराट
अप्रमत्त रहना
छुट न जाए
____ आत्म - धर्म की पतवार । विवेक से चलाना
भरी हुई है .. ____ जीवन की नौका
____ ज्ञान - कर्म - भार से, एक भी हो गया छिद्र
निमज्जित हो जाओगे
अनन्त सागर में पहुँच न पाओगे
सागर के उस पार जहाँ है मुक्ति का प्रकाश चमकता स्वर्णमयी संसार।
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