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आकार-निराकार
देख रहे तुम
अपलक, अमन्द
जहाँ-जहाँ आकाश, और जो देख रहे
वही कह रहे
यही है आकाश; पा जाआगे
उससे भी पार
अन्तहीन आकाश । कारण,
खोज रहे तुम
रूप आकाश का, है जहाँ अवकाश वहीं - वहीं आकाश रूप नहीं; अरूप है कैसे देखोगे
अरूप में रूप तुम निराकार में आकार तुम !
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