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स्वस्थ सोच के स्वामी बनें
औरों से गीतों की सौगात पाने के लिए कभी किसी को गाली मत दीजिए।
जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं—एक है शरीर और दूसरा है मन । इन दोनों की समवेत स्वस्थता ही व्यक्ति को सुख-शांति का स्वामी बनाती है। शरीर स्थूल है, मन उसके भीतर बैठा उसका संचालक । मनुष्य का मन और उसकी बुद्धि ही उसकी चैतन्यधर्मिता को अभिव्यक्त करते हैं । मनुष्य, सर्वोत्कृष्ट कृति क्यों?
शरीर की दृष्टि से मनुष्य अक्षम है, किंतु मन और उसकी चेतना की दृष्टि से वह सृष्टि का सर्वोपरि प्राणी है । यह हमारे मानवीय जीवन की विडम्बना ही है कि हम गोरैया की तरह आकाश में नहीं उड़ सकते; किसी मछली या घड़ियाल की तरह पानी में नहीं तैर सकते । हम बंदर की तरह न तो वृक्ष पर चढ़ सकते हैं और न ही चीते की तरह फुर्ती से दौड़ सकते हैं। हमारी दृष्टि बाज की तरह पैनी नहीं होती और नाखून बाघ की तरह मजबूत नहीं होते । बिच्छू कहलाने वाला एक छोटा-सा जंतु भी मनुष्य की सबल कहलाने वाली काया को मार गिराने के लिए पर्याप्त होता है। आखिर मनुष्य की शारीरिक अक्षमता के बावजूद उसमें ऐसी कौन-सी क्षमता है, जिसके चलते मनुष्य का रूप सर्वोपरि हुआ?
स्वस्थ सोच के स्वामी बनें
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