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________________ मारते हैं और न ही हेकड़ी हाँकते हैं । वे जिंदगी में कुछ करके दिखाने में ही विश्वास रखते हैं। जीवन में श्रम और संघर्ष करने का क्षेत्र इतना व्यापक है कि व्यक्ति जीवन भर प्रयास और पुरुषार्थ करता रहे । व्यक्ति का हर कार्य उसकी नई ताजगी और गुणवत्ता का परिणाम लिये हुए हो । हमने जो कार्य कल किया, हम जीवन भर उसी को दोहराते न रहें । मनुष्य का मस्तिष्क किसी मशीन में ढला हुआ लोहे का सांचा नहीं है कि जिससे एक जैसे माल का उत्पादन होता रहे। हमने जो कार्य कल किया, उसमें हर दिन नया सुधार होते रहना चाहिए । कल जो कार्य किया, उसमें क्या कमी रही, हम उस ओर ध्यान दें। अपने हर कार्य में सुधारों की नई संभावनाओं को तलाशते रहें। इससे जहाँ कार्य के प्रति हमारी निष्ठा बढ़ती जाएगी, वहीं कार्य और उसके परिणामों का स्तर भी बेहतरीन होता जाएगा। उजागर करें, अपनी प्रतिभा क्या हमने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि किसी की सफलता और हमारी विफलता का राज क्या है? आखिर सफल होने वाला व्यक्ति किसी देवलोक का किन्नर नहीं है और विफल होने वाला व्यक्ति किसी पहाड़ की चट्टान नहीं है। सफल और असफल व्यक्ति अलग-अलग किस्म के नहीं होते, केवल उनके जीने और काम करने के तरीके अलग-अलग होते हैं। अपने कार्य के प्रति रहने वाला उनका नजरिया ही उनकी सफलता और असफलता का बुनियादी फर्क लिये होता है। व्यक्ति की सोच और शैली में ही छिपा है जीवन की हर सफलता का राज । अपने किन्हीं मूलभूत सिद्धांतों, प्रतिबद्धताओं और बुद्धिमत्तापूर्ण संघर्षों के कारण ही लोग सफल होते चले जाते हैं । आखिर सफल होने वाले लोग कोई अलग काम नहीं किया करते, बस, वे हर काम अपने अलग तरीके से करते हैं । व्यक्ति की वास्तविक सफलता इसी में है कि वह अपने अतीत की हर सफलता के रिकॉर्ड में सुधार करता जाए । अपनी खामियों को सुधारना सफलता को भोर का बाना पहनाना है; अपनी गलतियों को लगातार दोहराए जाना रात के अंधियारे में खंभे से टकराना है । __भाग्य उसी की मदद करता है जो श्रम और संघर्ष के प्रति निष्ठाशील होते हैं। यदि कोई दरिद्र है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह अपने कार्य में सफल नहीं हुआ, वरन् वह अपने कार्य के प्रति सन्नद्ध ही नहीं हुआ। दौड़ जीतने वाला धावक अन्य धावकों कोशिशों में छिपी कामयाबियाँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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