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________________ करेंगे—जीवन-दर्शन के लिए, जगत्-दर्शन के लिए; सत्यबोध और सदाबहार माधुर्य के लिए? अन्तर्दृष्टि पूर्वक जगत को देखने की कला आ जाए, तो जीवन स्वतः सकारात्मक होता जाएगा। सहिष्णुता साकार हो जाएगी और व्यर्थ की प्रतिक्रिया और तनाव से उपरत होते जाएँगे । हम सदा हृदयवान रहेंगे, हमारी बुद्धि की धार तीक्ष्ण और प्रज्ञापूरित रहेगी। कोहरा हमसे छंटता जाएगा, हम प्रकाश-पथ के अनुगामी होंगे। जिएँ प्रकृति के सान्निध्य में हम जिएँ प्रकृति के सान्निध्य में। प्रकृति हमें अपनी प्रकृति से मुखातिब करवाएगी। हमारे जीवन को सहज और सरल बनाएगी। सरलता और सहजता के अभाव में ही दुःखों और तनावों की चीन-की-दीवार खड़ी होती है। प्रकृति जहाँ हमें जीवन की गहराई प्रदान करेगी, वहीं जीवन और जगत् के रहस्यों से रूबरू करवाएगी। हम प्रकृति के साथ जीकर तो देखें, आप ताज्जुब करेंगे कि फूलों को देखना केवल देखना भर नहीं होगा, हम स्वयं फूल की तरह खिलते जाएँगे। आप ध्यान से आकाश को देखें, आप पाएँगे भीतर-बाहर का भेद मिट गया । हम सागर की उठती-गिरती लहरों को देखें, हमें प्रतिक्षण हो रही परिवर्तनशीलता का आत्मबोध उपलब्ध होगा। उड़ते हुए पक्षियों को देखें तो हमारी धमनियों में भी मुक्ति का गीत फूट पड़ेगा। हम फूलों को चूमकर देखें, हमारे हृदय में प्रेम का सागर लहरा उठेगा । हम प्रकृति का सौन्दर्य देखें, प्रकृति का सौन्दर्य हममें नृत्य कर उठेगा। सहज हों जीवन के प्रति हम जीवन के प्रति सहज हों । इतने सहज कि जैसे बूंद सागर में समाती है, चूँघरू पाँव में बजते हैं । जीवन में जो होना है, वह होता जाए । हम होनी का सामना करें । आप पाएँगे आपकी नैसर्गिक प्रतिभा ऐसे उजागर होकर आ रही है जैसे मेहंदी रचने के बाद ललासी । जीवन की सहजता आपको निर्भय बनाएगी। आपकी आस्था और विश्वासों के नित-नये द्वार खोलेगी। परिस्थितियाँ आप पर हावी हों, उससे पहले आप उस पर अपना नियन्त्रण और स्वामित्व कर लेंगे। आपका व्यक्तित्व प्रभावी होता जाएगा। मनन करें जीवन का फुरसत के क्षणों में हम जीवन-जगत के बारे में मनन करें । मैंने पहले ही कहा है कि मनन स्वयं मार्ग देता है । बुद्धि का वास्तविक परिणाम पठन से नहीं, मनन से आता ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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