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जीवन से बढ़कर ग्रंथ नहीं
जीवन और जगत् को पढ़ना दुनिया की किसी भी महानतम पुस्तक को पढ़ने से ज्यादा बेहतर है।
यह सृष्टि कितनी सुन्दर, स्वर्गिक और मधुरिम है ! सृष्टि का पहला सत्य स्वयं सृष्टि का और सृष्टि पर हमारा होना है । सृष्टि को जब खुली आँखों से देखते हैं, तो सृष्टि का होना और सृष्टि में हमारे अस्तित्व का होना हमारे लिए सत्य का पहला कदम है। मुझे सृष्टि से प्यार है । जितना सृष्टि से है उतना ही सृष्टि पर जीवन जी रहे आप सब हममुसाफिरों से । जितना आप से और इस अखिल सृष्टि से प्यार है, उतना ही अपने आप से । मैंने कहा-अपने आपसे, पर यथार्थ तो यह है कि स्वार्थयुक्त व्यक्ति का केवल अपने आप से ही अनुराग होता है, लेकिन निःस्वार्थ चेतना के लिए स्व-पर का भेद मिट जाता है, 'वसुधैव कुटुम्बकम्' उसके जीवन का मंत्र हो जाता है । ऐसा है जगत का सत्य ___अपनी शांतचित्त-स्थिति में जब-जब भी बैठकर इस सारे जगत को निहारता हूँ तो अनायास ही जगत के प्रति अहोभाव उमड़ आता है यह देखकर कि यह सारी रचना कितनी सुंदर है । प्रकृति के द्वारा रचे गए पहाड़, उमड़ते-घुमड़ते बादल, चहचहाट करती चिड़ियाएँ, हवा के झौंकों से झूलती हरे-भरे वृक्षों की डालियाँ, समुद्र में उठती लहरें और मिट्टी की तहों में छिपा कुओं का मीठा पानी । कितना सुरम्य स्वरूप है यह सब ! सचमुच, हंसते-खिलते चाँद-सितारों को देखकर अंतरात्मा के गीत फूट पड़ते हैं और जब-तब जीवन से बढ़कर ग्रंथ नहीं
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