SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन की चिकित्सा ध्यान के द्वारा ध्यानयोग का नियमित प्रयोग हमें स्वस्थ और ऊर्जस्वित जीवन का स्वामी बनाएगा। धरती का हर प्राणी माया, मिथ्यात्व और अविद्या से घिरा हुआ है । दुःख, तनाव और रोग उसके जीवन के सहचर बने हुए हैं। हर किसी के भीतर संवेग-उद्वेग का वह अन्धा प्रवाह उठता रहता है, जिसके चलते मनुष्य जब-तब, चाहे-अनचाहे मनोविकारों से घिर उठता है । वह स्वयं को मनोविकारों और राग-द्वेष के अनुबन्धों से बंधा हुआ पाता है। मनुष्य को अपने मनोविकार, कषाय और वृति-संस्कारों के बारे में जितना ज्ञात है, उसके अज्ञात का हिस्सा उससे कई गुना ज्यादा है । विचार-विकल्प और विकार के रूप में दिखाई देने वाला मन, अन्तर्मन का स्थूल रूप है । स्थूल को बदलकर हम स्थूल-परिवर्तन को ही आत्मसात कर सकते हैं । जीवन के वास्तविक रूपान्तरण के लिए हमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर, सूक्ष्मतम की ओर बढ़ना होगा । जीवन के सूक्ष्म स्वरूप में उतरकर ही हम स्वयं की संपूर्ण चिकित्सा कर सकेंगे, सदाबहार सुख-शांति और मुक्ति-लाभ के स्वामी हो सकेंगे। उतरें, मन की तह तक काम-क्रोध, माया-मोह, वैर-विरोध, द्वेष-दौर्मनस्य जीवन की सदा विपरीत ९४ Jain Educationa International ऐसे जिएँ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy