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भर पानी में डूबने जैसा होता । मैं शिक्षा के प्रति सकारात्मक हुआ। माँ सरस्वती ने मुझे अपनी शिक्षा का पात्र बनाया ।
व्यक्ति यदि अपने जीवन-जगत में घटित होने वाली घटना से भी कुछ सीखना चाहे, तो सीखने को काफी कुछ है । सिर के बाल उम्र से नहीं, अनुभव से पके होने चाहिए। मनुष्य आयु से वृद्ध नहीं होता, वह तब वृद्ध हो जाता है जब उसके विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है ।
किसी वृद्ध जापानी को उसकी पचहतर वर्ष की आयु में चीनी भाषा सीखते हुए देखकर कहा—अरे, भलेमानुष, तुम इस बुढ़ापे में चीनी भाषा सीखकर उसका क्या उपयोग करोगे ? तुम तो मृत्यु की डगर पर खड़े हो । पीला पड़ चुका पत्ता कब झड़ जाए, पता थोड़े ही है । उस वृद्ध ने प्रश्नकर्त्ता को घूरते हुए देखा और कहा – आर यू इन्डियन ? प्रश्नकर्त्ता चौंका । उसने कहा – निश्चय ही मैं भारतीय हूँ, पर मेरे भारतीय होने का इस प्रश्न के साथ क्या सम्बन्ध ? वृद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा - भारतीय हमेशा अपने लिए मृत्यु को देखता है और जापानी हमेशा जीवन को । जो सवाल तुमने मुझे आज पूछा है, वह मुझसे तब भी किया गया था जब मैं साठ वर्ष का था । मैंने इस दौरान सात नई भाषाएँ सीखी हैं और पूरे विश्व का दो बार भ्रमण किया है ।
आँखों में बसे जीवन का सपना
जिसकी आँखों में मृत्यु की छाया है, उनका नजरिया नकारात्मक है । जिनकी आँखों में सदा जीवन का सपना है, वे सकारात्मक दृष्टि के स्वामी हैं । दृष्टि के नकारात्मक होते ही मन में उदासी और निराशा घर कर लेती है; व्यक्ति की चिंतन - शक्ति चिंता का बाना पहन लेती है; बुद्धि की उच्च क्षमता होने के बावजूद जीवन में मानसिक रोग प्रवेश कर जाते हैं । हम यदि अपने नजरिये को बदलने में सफल हो जाते हैं, तो जीवन की शेष सफलताएँ आपोआप आत्मसात हो जाती हैं । गत सप्ताह ही तमिलनाडू के कारागार से एक ऐसा कैदी छूटा, जो कैद हुआ तब तो किसी हत्या का अभियुक्त था और जब जेल से छूटा तो सीधा विश्वविद्यालय का प्रोफेसर बना । उसे अपने किये का प्रायश्चित हुआ । उसने कारागार में रहकर ही सारी शिक्षा ग्रहण की। मीडिया ने उसकी विश्वविद्यालय में नियुक्ति की जानकारी दी । इसे कहते हैं जीवन को बदलना, जीवन
का रूपान्तरण करना ।
स्वयं की जीवन-दृष्टि को सकारात्मक बनाने के लिए हम सबसे पहले अपनी
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ऐसे जिएँ
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