SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय संस्कृति में 'दर्शन' शब्द का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'दर्शन' शब्द की व्याख्याएँ अनेक तरीकों से हुई हैं। 'दर्शन' शब्द संस्कृत की दृश् धातु में ल्यूट् प्रत्यय लगने से निष्पन्न होता है। साहित्य के अनुसार 'दृश्यते अनेन इति दर्शनम्' अर्थात् जिसके द्वारा देखा जाए वह दर्शन है। देखना दो तरीके से होता है - (1) स्थूल आँखों से (2) सूक्ष्म आँखों से। दोनों तरह की दृष्टि अध्ययन में काम आती है। दर्शन की मूल आत्मा जिज्ञासा है। जीवन क्या है? जगत क्या है? मैं कौन हूँ? जीवन का उद्देश्य क्या है? हमें दुःखों का अनुभव क्यों होता है? मृत्युक्यों होती है? सुखी जीवन का सरल मार्ग कौनसा है? इन सभी प्रश्नों का समाधान पाने का नाम दर्शन है। आत्म-दर्शन, जीवन दर्शन, जगत् दर्शन, सम्यक् दर्शन इसी से जुड़े हुए हैं अर्थात् दर्शन शब्द का प्रयोग स्थूल और सूक्ष्म, भौतिक और आध्यात्मिक सभी अर्थों में किया जाता श्री चन्द्रप्रभ के सिद्धांत एवं विचार-दर्शन की एक अशा दर्शन और विज्ञान __ वर्तमान युग विज्ञान का चरमोत्कर्ष युग है। विज्ञान व तकनीक ने दर्शन तथा उसके सिद्धांतों को नए स्वरूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया है। अब दर्शन और अध्यात्म की प्राचीन बातें लोगों को अरुचिकर लगने लगी हैं लेकिन जब-जब विज्ञान धर्म, दर्शन, अध्यात्म और नैतिकता से दूर हुआ, तब-तब मानवता व मानवीय मूल्यों का ह्रास हुआ। ऐसे में अनेक चिंतकों ने दर्शन व विज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित करने की पहल की। जिसमें रिचर्ड हावेल,डॉ. हर्बट डींगल, सर जेम्स जोन्स, सर आर्थर एडिंगटन, बट्रेन्ड रसल, आइंस्टीन, नीत्से, कांट, विंग, हाइडेगर, युगलर, गुर्जिएफ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, श्री अरविंद, रानाडे, जे कृष्णमूर्ति, विनोबा भावे, कृष्णचंद भट्टाचार्य, सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, ओशो, तुलसी, महाप्रज्ञ, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, श्री चन्द्रप्रभ आदि प्रमुख हैं। आइंस्टीन ने तो यहाँ तक स्वीकार किया कि विज्ञान यदि करुणा की बात करे, तो बड़ा सौभाग्य है। विज्ञान आध्यात्मिक बने और अध्यात्म अंधविश्वास को छोड़ विज्ञान को अपनाए। इसी का परिणाम है कि दर्शन के सूक्ष्म तत्त्वों का वैज्ञानिक अनुसंधान हो रहा है। विज्ञान की एक शाखा 'न्यूरोथियोलोजी' में आध्यात्मिकता और मस्तिष्क के जटिल संबंधों की शोध की जाती है। ध्यान और योग का प्रयोग तो व्यवसाय तक में होने लगा है। वर्तमान में बुद्धि लब्धि (IQ), संवेग लब्धि (EQ) के साथ-साथ आध्यात्मिक लब्धि (SQ) को भी महत्व दिया जा रहा है। इस आध्यात्मिक लब्धि का मूल हमारे प्राचीन संस्कृति के शास्त्रों में है। 58> संबोधि टाइम्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy