________________
बनाती है। प्रत्येक स्तवन की शब्द रचना जीवंत है। भाव, अलंकार, प्रभुमहावीर आपसे क्या चाहते हैं? - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक शैली, लय की दृष्टि से भी प्रभावी है। इसमें हिन्दी व लोकप्रचलित में भगवान महावीर स्वामी द्वारा प्रदत्त किए गए संदेशों की वर्तमान भाषा का प्रयोग किया गया है।
उपयोगिता सिद्ध करते हुए खुद को अरिहंत बनाने, धरती को स्वर्ग प्रार्थना - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा रचित आदिनाथ से बनाने, जिओ और जीने दो को अपनाने और जागृत होकर जीने के लेकर महावीर स्वामी तक हुए 24 तीर्थंकर पुरुषों के गुणानुवाद से युक्त सरल सूत्र थमाए हैं। भजन एवं प्रार्थनाओं का संकलन है। श्री चन्द्रप्रभ प्रार्थना को हृदय और साधना के सुझाव- श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में संबोधि साधना परमात्मा को हृदयेश कहते हैं। उन्होंने असीम की हर संभावना को का सरल मार्गदर्शन दिया गया है। श्री चन्द्रप्रभ ने ध्यान के विभिन्न हृदय से ही मुखरित होना बताया है। पुस्तक के भजन हृदय को पहलुओं पर शोध करके संबोधि साधना का मार्ग आम जनता के लिए आनन्दविभोर करते हैं और प्रार्थनाएँ जीवन को पावन कर हमें परमात्मा प्रशस्त किया है। इस पुस्तक में संबोधि साधना क्या है? इसकी क्यों में डूबने का अवसर देती हैं। भाषा, लय, शब्द की दृष्टि से हर स्तवन आवश्यकता है? यह कैसे की जाती है? इसकी सावधानियाँ व प्रार्थना परिपूर्ण है। इसमें हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है। परिणामों पर विस्तृत एवं वैज्ञानिक रूप से समझ प्रदान की गई है। ध्यान
संबोधि साधना गीत - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा साधना, क्या है, ध्यान में कैसे प्रवेश करें और ध्यान से पूर्व किन आवश्यक बातों ध्यान, योग, अध्यात्म पर रचित दिव्य गीतों का संकलन है। हर गीत __ का ध्यान रखा जाए, इन प्रश्नों के समाधान का भी इसमें जिक्र किया अपने आप में अद्भुत है जो हमें सहज ही भीतर में उतरने की प्रेरणा गया है। इस पुस्तक में संबोधि ध्यान, मंत्र ध्यान, साक्षी ध्यान, चैतन्य देता है। पुस्तक में उनके द्वारा अष्टापद गीता पर हिन्दी में रचित दोहों ध्यान और मुक्ति ध्यान के नाम से पाँच ध्यान विधियों के साथ ही महर्षि का भी संकलन हआ है। उनकी गीतों से संबंधित दस से अधिक भजन पतंजलि द्वारा प्रदत्त किए गए योग सूत्रों के मुख्य सूत्रों का एवं भगवान कैसेट्स व सीडीज भी हैं।
महावीर द्वारा प्रदत्त ध्यान सूत्रों का भी उल्लेख किया गया है। प्रार्थना के पुष्प - इस छोटी-सी पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा महक उठे जीवन-बदरीवन - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में रचित श्री पारस इकतीसा, गौतम स्वामी इकतीसा, पद्मावती इकतीसा __ सामाजिक विकास में मनुष्य की भूमिका विषय पर विविध रूपों से का सुंदर समावेश हुआ है। आज हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन इस पुस्तक के विवेचन किया है । उन्होंने समाज व व्यक्ति की परस्पर आवश्यकता का माध्यम से प्रभु-भक्ति का रसास्वादन कर रहे हैं।
भी जिक्र किया है। वे सामाजिक विकास के लिए परस्पर प्रतिबद्धता
अपनाने, शक्ति का रचनात्मक उपयोग करने, समाज से पलायन न फुटकर साहित्य
करने, व्यक्तित्व का विकास करने का मार्गदर्शन देते हैं। वे कहते हैं, इस साहित्य के अतिरिक्त श्री चन्द्रप्रभ द्वारा लिखित फुटकर "एक स्पष्टभाषी होने की बजाय विवेकभाषी होना बेहतर है, साहित्य भी उपलब्ध है, जिसमें उनके द्वारा समय-समय पर दिए गए अधिकार मिलना गलत नहीं है, पर दूसरों के अधिकारों का हनन करना संदेशों का संकलन हुआ है। वे निम्न हैं -
गलत है और संकोच करने की बजाय संयम बरतना अच्छा है।" (1) कैसे जीतें क्रोध को (7) दादाश्री जिन कुशल सूरि ध्यान यात्रा का सार है आत्मदर्शन - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक (2) शरीर-शुद्धि का विज्ञान और सप्तम शताब्दी में अध्यात्म के दो मार्ग यथा : ध्यान एवं प्रेम की विस्तृत विवेचना की (3) साधना के सुझाव (8) चलें, फिर एक बार है। उन्होंने ध्यान पर महापुरुषों की वाणी व सूत्रों को प्रकट करते हुए (4) महक उठे जीवन-बदरीवन(9) चिंतन-अनुचिंतन
उनके द्वारा दी गई ध्यान विधियों का उल्लेख किया है। उन्होंने ध्यान (5) ध्यानयात्रा का सार है: (10) तीर्थ और मंदिर
की भूमिका बताने व उसमें गहराई लाने के लिए जीवन के स्वरूप पर,
तन-मन के संबंधों पर सहजतापूर्वक चिंतन का मार्गदर्शन दिया है। (11) अहिंसा और विश्वशांति
प्रेम और शांति - इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ के जीवन अनुभवों (6) प्रेम और शांति (12) अमृत संदेश।
के अमृत वचनों का संकलन है। असे लेकर ह तक क्रमश: 283 सूक्त उक्त साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -
हैं। यह पुस्तक गागर में सागर है, जो जीवन में काँटों की बजाय फूल कैसे जीतें क्रोध को - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में गुस्से पर खिलाने की प्रेरणा देती है। वे कहते हैं, "वे धन्य हैं जो धनी एवं बहत ही व्यावहारिक एवं मनोवैज्ञानिक शैली में विवेचन किया है। लोकप्रिय होकर भी घमंडी नहीं हैं।" इसमें गुस्से के कारण, परिणाम, प्रभाव एवं जीतने के सूत्र बताए गए हैं।
दादाश्री जिनकुशल सूरि और सप्तम शताब्दी - श्री चन्द्रप्रभ ने गुस्से को जीतने के लिए यह पुस्तक सरल मार्ग प्रदान करती है। वे
इस पुस्तक में उन्होंने जैन धर्म के महान् आचार्य, प्रभावशाली दादा श्री कहते हैं, "क्रोध तभी कीजिए जब आपके पास क्रोध करने के
जिनकुशल सूरि के जीवन-चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा अलावा अन्य कोई विकल्प शेष न हो।"
सामाजिक उत्थान में समर्पित की गई महत्त्वपूर्ण भूमिका का वर्णन शरीर-शुद्धि का विज्ञान - श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में जीवन किया है। की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए मानव को मंदिर बनने की प्रेरणा
धरती को बनाएँ स्वर्ग- श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक में धर्म के नाम दी है। उन्होंने शरीर का महत्व, शरीर विज्ञान एवं शारीरिक स्वास्थ्य के
पर चल रही कट्टरताओं को अनुचित ठहराया है। उन्होंने सदाचार एवं सरल सूत्रों पर बहुत उपयोगी मार्गदर्शन दिया है।
सद्विचार के साथ परस्पर और सुख के साथ जीने को सर्वश्रेष्ठ धर्म
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
संबोधि टाइम्स-55