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जैन धर्म को नया नेतृत्व प्रदान करने में इस गच्छ की मुख्य भूमिका काव्य-कवितापरक साहित्य श्रृंखला रही। उस भूमिका का समय-समय पर लेखा-जोखा किया गया, पर उसे ऐतिहासिक ढंग से प्रस्तुत करने में यह ग्रंथ विशिष्ट स्थान रखता
(1) समय के हस्ताक्षर (5) अधर में लटका अध्यात्म
(2) ज्योतिर्मुख (6) जिनशासन श्री चन्द्रप्रभ ने शोधपरक शैली एवं विशिष्ट दृष्टि से इसका
(3) बिम्ब-प्रतिबिम्ब (7) षड्दर्शन-समुच्चय। संपादन कर विशेष कार्य किया है। उन्होंने 'खरतर' शब्द का अर्थ ___ (4) छायातप (8) प्रतीक्षा तीव्रता, तेजोमयता, शक्तिमयता को बढ़ाने वाला बताया है। उन्होंने उपर्युक्त साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - खरतरगच्छ को अभ्युदय, विकास और अभिवर्द्धन की दृष्टि से समय के हस्ताक्षर आदिकाल, मध्यकाल और वर्तमानकाल इस तरह तीन भागों में
इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा रचित 77 कविताओं का संकलन विभक्त किया है। प्रस्तुत ग्रंथ इस आम्नाय के इतिहास का प्रथम भाग है
किया गया है। प्रत्येक कविता दार्शनिक, धार्मिक और नैतिक पक्ष को अर्थात् इसमें आदि काल का विस्तार से विवेचन किया गया है। श्री
उजागर करती है। कविता की भाषा-शैली, अभिव्यंजना शक्ति एवं चन्द्रप्रभ ने आदिकाल में ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी में हुए घटनाक्रम
भावगूढ़ता अनुपम, अनुत्तर व अद्वितीय है। कविताएँ सम्प्रदाय विशेष को लिखा है। उन्होंने आदिकाल को तीन खण्डों में प्रस्तुत किया है।
की सीमाओं से बँधी न होने के कारण सर्वभौम और हर व्यक्ति के लिए प्रथम खण्ड में खरतरगच्छ का सिंहावलोकन, दूसरे खण्ड में
उपयोगी बन गई हैं। इन कविताओं में मानव जाति के अभ्युदय, विश्वखरतरगच्छ के आदि काल का एवं तीसरे खण्ड में खरतरगच्छ के
___ बंधुत्व एवं विश्व-शांति की उदात्त भावनाएँ प्रस्तुत हुई हैं। कविताओं आदिकालीन ऐतिहासिक पुरुषों का विवेचन है।
में उनका चिंतन व अनुभव परिपक्व, परिष्कृत और प्रभावोत्पादक खरतरगच्छ के इतिहास को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए नज़र आता है। इन कविताओं में उनकी कवि, साधक और विचारक इस ग्रंथ में उच्च-स्तरीय कार्य किया गया है। यह ग्रंथ इतिहास एवं शोध की एक साथ छवियाँ देखने को मिलती हैं। कविताओं के विश्लेषण से दृष्टि से भी उपयोगी बना है। लेखन में पूर्णरूपेण ऐतिहासिक स्पष्ट होता है कि उनका काव्यगत, भाषागत एवं भावगत सौन्दर्य में दृष्टिकोण उजागर हुआ है। ग्रंथ में श्रुतियों व किंवदन्तियों की बजाय जीवन का यथार्थ धरातल प्रकट हुआ है। श्री चन्द्रप्रभ ने कवि के रूप में ठोस प्रणामों को प्रस्तुत किया गया है। इससे यह बात भी सिद्ध होती है पुरानी रूढ़ियों को त्यागकर अंधानुसरण करने की बजाय संस्कृति के कि दसवीं शताब्दी के बाद का काल जैन परम्परा व खरतरगच्छ के अच्छे तत्त्वों को भारतीय परिवेश में ढालकर अपनी मौलिकता का लिए ज्ञान व साधना की दृष्टि से स्वर्णतुल्य रहा। यह ग्रंथ श्रुत और परिचय दिया है। संयम प्रधान धर्म को जीने की प्रेरणा देने में भी सफल हुआ है। ज्योतिर्मुख अष्टावक्र गीता
इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा विरचित 36 कविताओं का अष्टावक्र गीता महर्षि अष्टावक्र एवं जनक के बीच किया गया संकलन किया गया है। इन कविताओं में साधना पथ की गतिशीलताओं आत्म-संवाद है जो साधना का दिव्य मार्ग सबके सामने प्रकट करता का चित्रण हुआ है। इनमें जीवन की अनुभूत गहराइयों का प्रस्तुतीकरण है। इसमें 20 अध्याय एवं 308 गाथा सूत्र हैं। श्री चन्द्रप्रभ द्वारा सभी किया गया है। इसकी प्रारंभिक आठ रचनाएँ दर्शन कर आधारित हैं, सूत्रों का सरल शैली में संपादन किया गया है एवं संबोधि सूत्र' के रूप मध्य रचनाएँ जीवन-जगत से संबंधित और अंतिम रचनाएँ में अष्टावक्र गीता का नया स्वरूप प्रकट किया है।
व्यावहारिक बोध से जुड़ी हुई हैं। वे सभी जीवों में एक ही ज्योति का समवाय-सुत्तं
संचार देखते हैं इसलिए उन्होंने जीवन मात्र में भेद की बजाय अभेद
दृष्टि रखने की प्रेरणा दी है। श्री चन्द्रप्रभ की इन कविताओं में दर्शन, समवाय-सुत्तं जैन साहित्य का प्रमुख एवं चतुर्थ अंग आगम शास्त्र
जीवन, जगत एवं राष्ट्र प्रेम का समन्वय हुआ है। उनकी भाषा, भाव, है। यह आगम सूत्रों की प्रस्तावना भी है और उपसंहार भी। इसमें ऐसे
शैली में अद्भुत साम्य है। वे भारत की आध्यात्मिक परम्परा को चिंतन सूत्र हैं जिनसे इतिहास की झलक मिलती है। कोश शैली के रूप में
के रूप में संजोने में सफल हुए हैं। इसमें संख्यात्मक तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं। श्री चन्द्रप्रभ द्वारा इस आगम
बिम्ब-प्रतिबिम्ब शास्त्र का संपादन किया गया है। वे इसे वैज्ञानिक संभावनाओं को जन्म देने वाला समृद्ध कोश मानते हैं क्योंकि इसमें धरती, आकाश, पाताल
यह एक अत्यंत सुंदर काव्यात्मक पुस्तक है। इस पुस्तक में श्री से जुड़े अनेक तथ्य प्रतिपादित हैं। उन्होंने परम्परा से ऊपर उठकर
चन्द्रप्रभ द्वारा रचित की गई 74 कविताओं का संकलन किया गया है। इसकी मौलिकता को पेश किया है। वे कहते हैं, "यदि सृजनधर्मी
सभी कविताएँ जीवन जगत में चल रही स्व-पर की उधेड़बुन का अनुशीलन किया जाए, तो अतीत की यह थाती वर्तमान के लिए
प्रकटीकरण हैं। भावना, परिकल्पना, संभावना, आशंका, दुःशंका, विस्मयकारी रोशनी की धार साबित हो सकती है।" श्री चन्द्रप्रभ की
अनुभूति, संवेदन, समरसता के साथ कविताओं में सत्य के संगान का आगमों पर पकड़ गहरी है। उनकी विद्वत्ता सर्वत्र नज़र आती है। पुरुषाथ हुआ है। अनुवाद एवं भाषा का स्तर इतना सरल है कि सहज ही बोधगम्य हो छाया तप जाता है। ग्रंथ में मूल पाठ की विशुद्धता अतिरिक्त विशेषता के रूप में इस पुस्तक में श्री चन्द्रप्रभ की करुण रस से भरी हुई सैकड़ों प्रस्तुत हुई है।
कविताओं का संकलन है। इन कविताओं को पढ़कर लगता है मानो
संबोधि टाइम्स »53
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