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________________ - ये ग़म के नहीं खुशी के आँसू हैं, क्योंकि आज मेरे पति 15 सालों में उनसे पूछा - क्या आप धर्म-आराधना, प्रभु-भक्ति करते हैं? उन्होंने पहली बार मुझे मेरे पीहर ले जा रहे हैं। इन्होंने आपका प्रवचन अभय कहा - महाराज जी, क्या बताऊँ, समय ही नहीं मिलता। सुबह 9 बजे प्रसाल स्टेडियम में 'घर को कैसे स्वर्ग बनाएँ ?' सुना तो इनकी आत्मा । दुकान जाता हूँ, वापस आते-आते रात्रि के 9 बज जाते हैं। अब आप ही हिल गई। मेरे पापाजी और इनकी किसी कारणवश बहस हो गई थी बताएँ कि धर्म-आराधना कैसे करूँ? श्री चन्द्रप्रभ ने उनसे पूछा - अगर और इन्होंने ससुराल जाना छोड़ दिया, साथ ही मुझे भी नहीं जाने का आप अपने बेटों के लिए 2-4 लाख रुपये ज़्यादा कमाकर चले जाएँगे आदेश दे दिया। मैं आपकी जीवन भर ऋणी रहूँगी कि आपने मेरे टूटे तो भी क्या वे आपके अहसानमंद रहेंगे? क्या आपके जाने के बाद घर को जोड़ दिया, उसे स्वर्ग बना दिया, सोचा आपको इसके बदले आपके नाम पर धर्म-पुण्य-दान करेंगे? बचपन में ज्ञानार्जन किया, क्या दूँ तो आँखों में अपने-आप श्रद्धा के आँसू बह निकले। ज़वानी में धनार्जन किया, पर अब यदि बुढ़ापे में पुण्यार्जन नहीं करेंगे प्रवचनों का हुआ असर - अजमेर की एक बहिन ने बताया तो फिर किस उम्र में करेंगे? यूँ ही संसार में उलझे रहेंगे तो क्या प्रभु के कि उसके पति इतने गुस्सैल थे कि उसे दिन में दस-बीस बार उनके ___ दरबार में मुंह दिखाने के क़ाबिल रहेंगे? दादाजी ने कहा - धंधा छोड़ गुस्से का सामना करना पड़ता और हर बार आँसू आने के बाद ही दिया तो समय कैसे बिताएँगे? उन्होंने कहा- आप संपन्न हैं, कुछ धन उनका गुस्सा ठण्डा पड़ पाता। इसके चलते मेरा जीवन नरक बन गया। निकालिए, छोटा-सा हॉस्पिटल बनाइए और दुःखी-रोगी मानवता की था। एक बार मेरा श्री चन्द्रप्रभ की बर्फखाना मैदान में चल रही सेवा में दिन के पाँच-छह घंटे समर्पित कीजिए। आपको खुशी की प्रवचनमाला में जाना हुआ। मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं जैसे-तैसे अनुभूति होगी कि मैंने केवल अपने या परिवार वालों के लिए ही नहीं करके अपने पति को भी एक दिन साथ लेकर आई। प्रवचनों से वे वरन् मानवजाति के लिए भी कुछ किया। जब वे बुज़ुर्ग दादाजी वापस प्रभावित हुए और हमेशा आने लगे। प्रवचनों को सुनते-सुनते पति में रवाना होने लगे तो उनके चरणों में पंचांग प्रणाम करते हुए कहाइतना बदलाव आ गया कि यह कहते-कहते बहिन की आँखों में आँसू हत-कहत बाहन का आखा म आसू आज आपने मेरी आत्मा को हिला दिया है, मैं मद्रास पहुँचते ही आ गए। उन्होंने कहा - मैं जीवनभर आपकी आभारी रहूँगी क्योंकि मानवता की सेवा में ज़रूर कुछ-न-कुछ नेक काम करूँगा। आपने मेरे पूरे परिवार को स्वर्ग बना दिया है। ऐसा हाथ थामा कि जीवन सुधर गया - श्री चन्द्रप्रभ के एक परिवार प्रेमपूर्ण बन गया - बोम्बे की घटना है। महेन्द्र भाई को बार अंगूठे में काँच का कट लग गया, जिसके कारण अंगूठे को ऊपरएक कार्ड मिला। जिसमे लिखा था- सादर निमत्रण। पूज्य श्री चन्द्रप्रभ नीचे करने वाले लिगामेन्ट्स भी कट गए। ऑपरेशन के लिए उनका जी का दिव्य सत्संग। वे वहाँ पहुँचे तो देखा सैकड़ों लोग आए हुए हैं। जयपुर जाना हुआ।सौभाग्य से मैं भी साथ में था। ऑपरेशन में बाईपास बड़ी स्क्रीन पर श्री चन्द्रप्रभ का 'माँ की ममता हमें पुकारे' विषय पर सर्जरी करके हाथ की नाड़ी को अँगूठे में फिट किया गया। ऑपरेशन प्रवचन चल रहा है। उन्होंने आयोजनकर्ता से पूछा - दस रुपये की के बाद उनको शय्या से उठने, नीचे उतरने व पुनः बैठने के लिए सीडी दिखाने के लिए इतना बड़ा आयोजन । आयोजनकर्ता ने कहा सहयोग की अपेक्षा रहती थी। इसी दौरान एक बार उन्होंने हॉस्पिटल में मैंने व मेरे परिवारवालों ने जब से इस प्रवचन को सुना है तब से हमारा कुशल-क्षेम पूछने आए एक युवक के हाथों में अपना हाथ शय्या से घर प्रेमपूर्ण बन गया है। मैंने यह सब इसलिए किया ताकि और घरों में नीचे उतरने के लिए थमा दिया। सेवा हो गई। युवक चला गया। युवक भी प्रेमपूर्ण वातावरण बन सके। यह है प्रवचन का प्रभाव। के लिए अपने हाथ में गुरुजी का हाथ आना आनंदकारी अनुभव था। ड्राइवर का बदला हृदय- अजमेर के एक महानुभाव ने बताया उसने इस बात को अपनी माँ से कहा। माँ ने कहा- त बडा क़िस्मत कि वे अपने परिवार के साथ बिजयनगर से भीलवाड़ा जा रहे थे। गाड़ी वाला है. जो गरुने तेरा हाथ थामा। ऐसा करके उन्होंने हमारे जीवन को में मैंने श्री चन्द्रप्रभ की माँ की ममता वाले प्रवचन की सीडी लगाई। अपने हाथों में शाम कर हमारा निस्तार कर दिया। ऐसा सनकर यवक हम लगभग एक घंटा चले होंगे कि अचानक ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और और आनन्द से भर गया। वह युवक सिगरेट पीता था। न जाने उसे क्या गाड़ी के पीछे जाकर जोर-जोर से रोने लगा। मैंने उससे पूछा - ये हुआ, वह घर से सीधा हॉस्पिटल पहुँचकर उनके पास आया और अचानक तुझे क्या हो गया? उसने कहा- प्रवचन सुनते-सुनते मेरी कहने लगा - मुझे आप आज से हमेशा के लिए सिगरेट पीने का त्याग अंतरात्मा हिल गई । मैंने अब तक अपनी माँ को दुख के अलावा कुछ करवा दीजिए। उनको भी आश्चर्य हुआ कि उन्होंने पहला ऐसा युवक नहीं दिया। मुझे अपनी करणी पर पश्चाताप हो रहा है। उस मुस्लिम देखा जो खुद चलाकर सिगरेट का त्याग करने आया हो। उन्होंने युवक ड्राइवर ने मुझसे कहा- मैं पहले अपनी माँ से मिलना चाहता हूँ। मैंने से पूछा - आखिर आपको यह प्रेरणा किसने दी? युवक ने कहा - कहा- ठीक है। बिजयनगर के पास ही एक गाँव में उसकी माँ अकेली अंतआत्मा ने। उन्होंने पूछा - मतलब? युवक ने बताया- उसने जैसे ही रहती थी। हम जैसे ही उसके गाँव पहुँचे, ड्राइवर ने माँ को प्रणाम सिगरेट हाथों में ली कि उसे माँ के शब्द प्रत्यक्ष दिखाई देने लगे। उसकी किया, रोते हुए अपने अपराधों के लिए माफी माँगी। माँ को दो हजार चेतना ने उसे झकझोरा कि जिन हाथों को गुरु ने थामा, उनका उपयोग रुपये पकड़ाए और कहा - अब चाहे जो भी हो, तुझे बिजयनगर में मेरे तू सिगरेट पीने के लिए कर रहा है तुझे धिक्कार है। बस, मैं अब ज्यादा पास ही रहना होगा। माँ से हाँ भराकर उसने कहा- मैं मालिक को गिरना नहीं चाहता हूँ। भीलवाड़ा छोड़ कर वापस आ रहा हूँ, तब तक तू सामान बाँधकर तैयार कर ले। उन महानुभाव ने बताया कि प्रवचन की वीसीडी का प्रत्यक्ष राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक प्रभाव व चमत्कार देखकर हम गद्गद् हो उठे। श्री चन्द्रप्रभ की कृतियों से उनका राष्ट्र प्रेम भी स्पष्ट झलकता है। ऐसे हिली आत्मा - मद्रास का एक परिवार जोधपुर, संबोधि वे राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति का गुणगान धाम देखने आया। उसमें 77 वर्ष के एक दादाजी भी थे। श्री चन्द्रप्रभ ने किया है। वे देश की वर्तमान समस्याओं पर चिंतित भी नजर आते हैं। 26 » संबोधि टाइम्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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