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गीता पर जो कुछ लिखा गया है उस सबमें परम्परागतता नजर आती है, हुआ आत्मविश्वास जग गया। पर श्री चन्द्रप्रभ ने जो लिखा वह परम्परा से हटकर है। वे स्वयं को देश के शीर्षस्थ प्रवचनकार गीता-प्रेमी मानते हैं। वे गीता के संदेशों को आत्मसात करने व फैलाने
श्री चन्द्रप्रभ की देश के शीर्षस्थ प्रवचनकारों में गिनती होती है। की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं, "गीता भारत की आत्मा है। गीता युद्ध
उनकी वक्तव्य शैली लाजवाब है। वे जहाँ भी जाते हैं छत्तीस कौम की करना नहीं, अरिहंत बनाना सिखाती है। कर्तव्य-पालन का पाठ पढ़ाने
जनता उन्हें सुनने के लिए लालायित हो उठती है। बच्चे से लेकर बड़ों और सोये हुए आत्मविश्वास को जगाने की प्रेरणा है गीता। गीता दुर्बल
तक, अशिक्षित से लेकर उच्च शिक्षित व्यक्ति तक उनकी बातें बड़े मन की चिकित्सा करने वाला ग्रन्थ है। अगर गीता के संदेशों को भीतर
काम की होती हैं। हर कोई उन्हें सरलता से समझ लेता है। इसीलिए से जोड़ लिया जाए तो ये महावीर के आगम बन जाएँगे।" उन्होंने
उनके प्रवचनों एवं सत्संगों में जैन, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि भगवान श्रीकृष्ण के बारे में लिखा है, "कृष्ण अपने आप में प्रेम के
सभी धर्म-परम्पराओं के लोग हजारों की संख्या में आते हैं। उनके अवतार, शांति के देवदूत, कर्तव्य-परायणता की किताब और कर्म,
वक्तव्यों में केवल पांडित्य पूर्ण बातें नहीं होतीं, वरन् विद्वता, अनुभव ज्ञान तथा भक्ति की त्रिवेणी बहाने वाले भारत के भाग्य विधाता हैं।"
एवं वैज्ञानिकता का भी समावेश होता है। वे जीवन-सापेक्ष होकर उन्होंने अपने जीवन से जुड़े गीता के अनेक उपकारों व प्रभावों का भी
बोलते हैं और जीवन-निर्माण की बात करते हैं। गूढ़ से गूढ़ बातों को जिक्र किया है। वे घर-घर में गीता को रखने व उसका पारायण करने
सरलता व सहजता से बोलना व समझाना उनकी विशेषता है। उनकी की प्रेरणा देते हैं। वे गीता को नपुंसक हो चुकी चेतना को जगाने के
प्रभावी वक्तृत्व कला और इससे जनमानस पर पड़ने वाले प्रभाव से लिए रामबाण औषधि मानते हैं। गीता के सूत्रों पर की गई व्याख्याओं से
जुड़ी कई घटनाएँ इस प्रकार हैं - जुड़ा उनका ग्रंथ 'जागो मेरे पार्थ' जन-जन में बहुत चर्चित हुआ है।
वैर बदला प्रेम में - जयपुर के एक ज्वैलर्स ने अपने दो लाख यह ग्रंथ उनकी सर्वधर्मसद्भावना का प्रतीक है। वे कृष्ण द्वारा तोड़ी गई माखन की मटकियों को पापों की मटकियाँ फोड़ने के रूप में
रुपये न लौटाने के कारण दूसरे व्यापारी को फोन पर जान से मारने की सौभाग्यकारी मानते हैं। वे प्रतिवर्ष हजारों-हजार श्रद्धालुओं के बीच
धमकी दी। व्यापारी धमकी पाकर आतंकित हुआ, पर रुपये नहीं
लौटाये। ज्वैलर्स भी यह सोचकर परेशान था कि कहीं उसे मारने के धूम-धाम से जन्माष्टमी महोत्सव मनाते हैं। गीता भवन, इंदौर के मंत्री
बाद अनर्थ न हो जाए। संयोग से उन्हें जैन दादाबाड़ी में श्री चन्द्रप्रभ राम विलास राठी कहते हैं, "गीता पर अब तक हमने अनेकों दफा
का सत्संग मिला। उन्होंने सत्संग में प्रेरणा देते हुए कहा - जो कार्य प्रेम प्रवचन सुने लेकिन कोई जैन संत भी गीता पर इतना जबर्दस्त बोल
और क्षमा से हो जाए उसके लिए तैश और तकरार का रास्ता नहीं सकते हैं यह देखकर हमारा सारा समाज गद्गद और अभिभूत है।" श्री
अपनाना चाहिए। न जाने उन पर कैसा असर हुआ वे घर जाने की चन्द्रप्रभ के गीता से जुड़े निम्न घटना प्रसंग उल्लेखनीय हैं -
बजाय सीधे उस व्यापारी के घर गये और अपने ग़लत व्यवहार के लिए उपराष्ट्रपति पर पड़ा ग्रंथ का प्रभाव - सन् 1996 में श्री
क्षमा माँगते हुए कहा, "जब आपके पास रुपयों की सहूलियत हो तब चन्द्रप्रभ का चातुर्मास गीताभवन, जोधपुर में था। चातुर्मास के दौरान
पहुँचा देना। आज के बाद मैं कभी नहीं माँगूगा।" यह व्यवहार देखकर श्री चन्द्रप्रभ के 'जागो मेरे पार्थ' ग्रंथ का लोकार्पण तत्कालीन मुख्यमंत्री
व्यापारी आश्चर्य में पड़ गया। उसने कहा,"तुम्हारे स्वभाव में इस तरह श्री भैरोंसिंह शेखावत द्वारा किया गया। जब श्री शेखावत उपराष्ट्रपति
का परिवर्तन कैसे आया?" जवाब मिला, "श्री चन्द्रप्रभ के सत्संग बने तब उनका फिर उनके सान्निध्य में आना हुआ। अपने अध्यक्षीय
से।"व्यापारी भी पसीज़ उठा। वह तुरंत भीतर कमरे में गया और बीस भाषण में उपराष्ट्रपति ने कहा, "मैंने गीता पर कई संतों के ग्रंथ पढे, पर
हज़ार रुपये थमाते हुए कहा, "अभी मेरे पास इतने ही हैं, शेष राशि मैं जब पूज्य श्री चन्द्रप्रभ जी द्वारा गीता पर लिखे 'जागो मेरे पार्थ' ग्रंथ को
आपको इसी माह पहुँचा दूंगा।" पढ़ा तो पहली बार समझ में आया कि गीता का अंतर्रहस्य क्या है? यह
हृदय-परिवर्तन - सन् 1996 में संबोधि-धाम, जोधपुर में एक ग्रंथ मेरे हृदय को इतना छू गया है कि मैं हर समय इसे अपने पास ही
नेपाली भाई काम करता था। उस समय चारों तरफ सुनसान बस्ती थी, रखता हूँ और यथासमय इसका पठन करता हूँ जिससे मुझे एक अलग
लेकिन वह बहुत बहादुर था। संबोधि-धाम में वह अकेला सो जाता ही सुकून और आनंद मिलता है। जैन परिवेश में भी गीता पर इतना
था। एक बार वह बिना बताए अपने घर नेपाल चला गया। कुछ समय गहरा विश्लेषण और व्याख्या करना अपने आप में आश्चर्य है।"
बाद उसका एक पत्र आया। उसमें लिखा था, "गुरुजी, मैं वहाँ गलत गीता का प्रभाव- श्री चन्द्रप्रभ अपने पिता एवं भ्राता संत के साथ
कार्यों को अंजाम देने आया था, पर आपका सत्संग पाकर मेरा मन माउंट आबू की यात्रा पर जा रहे थे। किसी विरोधी तांत्रिक ने उन पर मूठ बदल गया। मैं भविष्य के लिए संकल्प लेता हूँ कि चाहे मुझे भूखा ही फेंक दी। उन्हें खून की उल्टियाँ होने लगीं। वे कमजोर होने के साथ क्यों न मरना पड़े, पर मैं कभी भी अपने जीवन में गलत कार्य नहीं भयग्रस्त भी हो गये। अब तो हवा भी चलती तो वे भयभीत हो जाते। करूँगा।" चलते-चलते वे एक स्थान पर पहुंचे। उन्हें एक घर में रुकने के लिए ठेले वाले ने दी सिलाई मशीन-सन 2006 में श्री चन्द्रप्रभ की कमरा मिला, वहाँ पुरानी किताब का एक गुटका रखा हुआ था। उन्होंने गाँधी मैदान, जोधपर में प्रवचनमाला चल रही थी। श्री चन्द्रप्रभ ने उसे देखा तो वह गीता थी, उनकी सीधी नजर उसके दूसरे अध्याय पर
गरीब एवं जरूरतमंद महिलाओं को सिलाई सिखाने के लिए सिलाईपड़ी जिसमें लिखा था- हे अर्जुन, तू हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग प्रशिक्षण केन्द्र खोलने की घोषणा की। जब उन्होंने सत्संगप्रेमियों से कर, आगे बढ़, मैं तेरे साथ हूँ। उन्हें लगा - भगवान ने उनके लिए ही।
सिलाई मशीनें समर्पित करने का आह्वान किया तो मैदान के बाहर यह संदेश लिखा है। उनकी मन की दुर्बलता समाप्त हो गयी और सोया सब्जी-फट का ठेला लगाने वाले एक व्यक्ति ने भी एक मशीन इस
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