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________________ 90 श्री चन्द्रप्रभ धर्मानुशास्ता, समाज-निर्माता एवं राष्ट्र-भावना से ओतप्रोत हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से धर्म, समाज और राष्ट्र को नई दिशा-नई दृष्टि प्रदान की है। उनकी दृष्टि में, समाज एवं राष्ट्र एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के उत्थान में दूसरे का उत्थान एवं एक के पतन में दूसरे का पतन निहित है। धर्म का अर्थ पंथ-परम्परा से लिया जाता है। यद्यपि पंथ-परम्पराओं ने बिखरे हुए लोगों को समूहबद्ध बनाने में योगदान दिया, पर उससे धर्म रूढ़ मान्यताओं एवं क्रियाकाण्डों में सिमट गया। परिणामस्वरूप धर्म जीवन के उत्थान का द्वार बनने की बजाय दीवार बन गया। श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म को पंथपरम्परा और क्रियाकाण्डों से ऊपर उठाकर उसे जीवन मूल्यों और नैतिक मूल्यों के साथ जोड़ा। उन्होंने धर्म को मानवीय मूल्यों के रूप में प्रस्तुत किया और उसे जीवन-निर्माण का आधार-स्तंभ बनाया। अतीत में तीर्थंकर महावीर और तथागत बुद्ध जैसे महापुरुषों ने भी धर्म के नाम पर बने हुए बाहरी क्रियाकाण्डों का विरोध कर अहिंसा, सत्य-सदाचार और शील-प्रधान धर्म की स्थापना की थी। समाज का अर्थ सामान्य तौर पर किसी जाति के समूह से लिया जाता है। सामाजिक समूह होने से परस्पर लेन-देन, वाणी-व्यवहार और सहयोग-समर्थन आदि कार्यों में सुविधा रहती है। कभी-कभी मानसिक संकीर्णता, परम्परागत कट्टरता की भावना के कारण अथवा अधिकारों की लड़ाई के चलते ये समूह परस्पर एक-दूसरे के विरोधी बन जाते हैं, जिससे सामाजिक दूरियाँ बढ़ जाती हैं। मानव-समाज के लिए सामाजिक एकता बने रहना परम आवश्यक है, यह तभी संभव है जब व्यक्ति समाज से ऊपर उठा हुआ हो और सर्वकल्याण का चिंतन रखता हो। श्री चन्द्रप्रभ किसी समाज विशेष के दायरे तक सीमित नहीं है। उन्होंने सभी समाजों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। श्री चन्द्रप्रभ साम्यवाद से चार कदम आगे की सोच रखते हैं। जहाँ साम्यवाद अमीर-गरीब की भेदरेखा से मुक्त समाज की स्थापना पर बल देता है वहीं श्री चन्द्रप्रभ प्रत्येक व्यक्ति और समाज की समृद्धि के पक्षधर हैं। श्री चन्द्रप्रभ की राष्ट्रीय दृष्टि भी नई दिशा दिखाती है। वे राष्ट्र को मात्र जमीनी सीमाओं के बीच नहीं देखते हैं। उनकी दृष्टि में, "राष्ट्र एक संस्कृति, सभ्यता और विचारधारा का नाम है।" इस तरह श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन धर्म, समाज एवं राष्ट्र की परम्परागत धारणा से ऊपर है। उन्होंने मानव-जाति के उत्थान से जुड़ा दर्शन प्रस्तुत किया है। श्री चन्द्रप्रभ ने धर्म को नया स्वरूप देने में, समाज को प्रगतिशील बनाने में और राष्ट्रीय उन्नयन में महत्त्वपूर्ण योगदान समर्पित किया है। श्री चन्द्रप्रभ के द्वारा धर्म, समाज और राष्ट्र को दिए गए अवदान का आगे विस्तार से विवेचन किया जा रहा है - संबोधि टाइम्स > 123 For Personal & Private Use Only श्री चन्द्रप्रभ की धर्म, समाज एवं राष्ट्र को देन Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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