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________________ विशेषताओं को बाहर निकलने नहीं देती। उन्होंने अहंकार को जीतने के लिए जीवन को सरल, विनम्र और मधुर बनाने की प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "जो लकड़ी सीधी होती है वह राष्ट्रध्वज को लहराने का गौरव प्राप्त करती है। टेढ़ी-मेढ़ी लकड़ियाँ तो मात्र चूल्हे में ही जलाई जाती हैं।" उन्होंने नम्रता को जीने के लिए तीन मंत्र दिए हैं 1. कड़वी बात का जवाब मिठास से दो। 2. क्रोध आने पर चुप रहो। 3. दंड देते समय कोमलता रखो। श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में मोह को त्यागने व प्रेम के धर्म को जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा दी गई है। दोनों दार्शनिकों ने मोह को बंधन व प्रेम को मुक्ति माना है। श्री रविशंकर ने वासना और प्रेम की तुलना करते हुए कहा है, “वासना तनाव है और प्रेम विश्राम। वास प्रयत्न है और प्रेम प्रयत्नहीन । वासना जकड़ती है और प्रेम स्वतंत्रता देता है।" इस प्रकार उन्होंने वासना से निकलकर प्रेम की ओर यात्रा करने का मार्गदर्शन दिया है। श्री चन्द्रप्रभ ने प्रेम को पूजा और परमात्मा की संज्ञा दी है। वे प्रेम से बढ़कर कोई धर्म नहीं मानते हैं। उन्होंने आज के युग में मर्यादा, कर्मयोग, अहिंसा से ज़्यादा प्रेम के धर्म की आवश्यकता को बताया है। उनकी दृष्टि में, " प्रेम के बिना जीवन सूना है और धर्म अधूरा प्रेम की शुरुआत इंसानों से होती है, उसका विस्तार पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों पर होता है और उसकी पराकाष्ठा परमात्मा पर जाकर होती है।" उन्होंने प्रेम को जीने के लिए निम्न सिखावन दी है 1. घर में आई रिश्तों की टूटन को दूर करें। 2. दीन-दुखियों की सेवा करें। 3. प्रेम को वासना से मुक्त करें। 4. प्रेम को सार्वजनिक करें। 1 श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने प्रार्थना के संदर्भ में भी चर्चा की है श्री रविशंकर कहते हैं, "जहाँ कुछ माँगने की इच्छा नहीं उठे। जो कुछ मिला है, प्रकृति की ओर से उसके प्रति एक असीम तृप्ति का भाव, कृतज्ञता का भाव रखना सच्ची प्रार्थना है।" श्री चन्द्रप्रभ ने 'चार्ज करो ज़िंदगी' पुस्तक में लिखा है- परमपिता परमेश्वर पर विश्वास करना, जब चाहें - जहाँ चाहें प्रभु की प्रार्थना कर लेना, प्रार्थना मह शब्दों का खेल न बनने देना, संकट की घड़ी में भी उस पर विश्वास रखना, उनके प्रति शिकवा - शिकायत न पालना, मुस्कुराना, आभार प्रकट करना और की गई प्रार्थना को पूरा करने का दायित्व प्रभु पर छोड़ देना ही सच्ची प्रार्थना है। 44 श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने अध्यात्म के बारे में भी मार्गदर्शन दिया है। आध्यात्मिकता की विवेचना करते हुए श्री रविशंकर ने लिखा है, “प्रेम, प्रसन्नता, परम आनंद, करुणा, सौन्दर्य, उत्साह, ये सभी आत्मा से जुड़े हुए हैं इन्हें सजीव करना आध्यात्मिकता है।" उन्होंने व्यावसाय को भी अध्यात्म से परिपूर्ण बनाने की प्रेरणा दी। उनकी दृष्टि में आध्यात्मिकता हृदय है और बिजनेस हमारे पैर हैं। इन दोनों के बिना व्यक्ति व समाज अपूर्ण है। बिजनेस से भौतिक सुविधा आती है। और आध्यात्मिकता हमारी मनोभावना में विश्रांति लाती है। दोनों में सहयोग से ही जीवन नीतिपूर्ण बन सकता है।" श्री चन्द्रप्रभ ने अध्यात्म के अंतर्गत जीवन को जागरूकतापूर्वक जीने की कला सिखाई है। वे मानसिक विकारों पर विजय प्राप्त करने और होश व बोधपूर्वक जीवन को जीने को आध्यात्मिक धर्म कहते हैं। उन्होंने व्यक्ति को गृहस्थ संत - Jain Education International बनकर सभी दायित्व निभाने की प्रेरणा दी है। जीवन में साधुता लाने के लिए वे चार बिन्दुओं को जीने की प्रेरणा देते कहते हैं, "सहजता, सकारात्मकता, सचेतनता और निर्लिप्तता को जीवन से जोड़ा जाए। पहले दो बिंदु व्यावहारिक जीवन से जुड़े हुए हैं, अगले दो बिंदु आध्यात्मिक जीवन से चारों को एक साथ जोड़कर जीवन को शांतिमय, सुखमय, आनंदमय और प्रज्ञामय बनाया जा सकता है।" श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने 'मोक्ष' के बारे में चर्चा की है। श्री रविशंकर मोक्ष का अर्थ शाश्वत शांति और मस्ती बताते हैं। उनकी दृष्टि में, “जब हर तरह की प्यास से हम शांत हो जाएँ, हमारे भीतर किसी भी तरह की बाधा, चिंता, बोझ न हो ऐसी स्थिति मोक्ष है।" श्री चन्द्रप्रभ ने अन्तर्मन और अन्तरात्मा की निर्मल स्थिति को मोक्ष माना है। उन्होंने मोक्ष को जीते-जी उपलब्ध करने की प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "दृष्टि सम्यक् हो, सोच सम्यक् हो, ज्ञान और चारित्र सम्यक् हो, आत्म-स्मृति सम्यक् हो, कर्म और भाव सम्यक् हो। सम्यक्त्व और जीवन की शुद्धता का परिणाम है मोक्ष।" इस तरह मोक्ष पाने हेतु श्री रविशंकर स्वयं को शांत करने व श्री चन्द्रप्रभ जीवन को निर्मल तथा हर गतिविधि को सम्यक् बनाने का मार्ग दर्शाते हैं । श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने ईश्वर के स्वरूप पर भी प्रकाश डाला है। श्री रविशंकर कहते हैं, "धरती-सा धीरज, आग सी चमक, वायु- सा हल्का, जल-सा नम्र और आकाश की तरह सर्वव्याप्त, जिनमें ये गुण हैं वही ईश्वर है।" उन्होंने ईश्वर को सर्वत्र देखने की प्रेरणा दी है। वे कहते हैं, "स्वयं में ईश्वर को देखना ध्यान है, दूसरे में ईश्वर को देखना प्रेम है, सर्वत्र ईश्वर को देखना ज्ञान है और ईश्वर की अभिव्यक्ति है सचेत कार्य" श्री चन्द्रप्रभ ने ईश्वर के अस्तित्व को सर्वत्र स्वीकार किया है। उनकी दृष्टि में, उसे अपने में, अपने आसपास उसका अहसास करना ही उसे पाने का मार्ग है। उन्होंने आत्मा की शुद्ध निर्मल दशा को भी परमात्मा माना है। श्री चन्द्रप्रभ के अनुसार, " भीतर - बाहर के द्वैत से, अंतर- द्वन्द्व से मुक्त चेतना की निर्मल दशा ही परमात्मा है।" उन्होंने परमात्म प्राप्ति के लिए मैं - तू के भाव से ऊपर उठने और भीतर में उसके प्रति प्यास जगाने की प्रेरणा दी है। श्री रविशंकर एवं श्री चन्द्रप्रभ ने वर्तमान युग में नैतिक क्रांति की आवश्यकता पर बल दिया है। श्री रविशंकर ने नैतिकता के ह्रास का कारण जातिवाद, भ्रष्टाचार, दलगत राजनीति और संकीर्ण मनोभाव को माना है। उन्होंने अध्यात्म और विवेक को नैतिकता की नींव कहा है। उनकी दृष्टि में, "जो हमारी चेतना को जगा दे वही नैतिकता है।" श्री चन्द्रप्रभ ने नैतिक मूल्यों को राष्ट्र की असली ताक़त बताया है। उन्होंने अनैतिकता का कारण सुस्त न्याय प्रणाली, वोटों की राजनीति, गरीबी और भोग-विलास की बढ़ती तृष्णा को बताया है। उन्होंने नैतिकता को स्थापित करने के निम्न सुझाव दिए हैं 1. जन्म से ही धर्म की बजाय राष्ट्र प्रेम के संस्कार दिए जाएँ । 2. नैतिकता की प्रेरणा देने वाले मंदिर खड़े किए जाएँ । 3. पश्चिम की ईमानदारी, नैतिकता व राष्ट्रभक्ति के मूल्यों से प्रेरणा ली जाए। 4. भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों और देशद्रोहियों के खिलाफ युवा संगठित हों । 5. पहले व्यक्ति खुद नैतिक बने फिर औरों को नैतिक बनाने का संकल्प ले। संबोधि टाइम्स 12.7org For Personal & Private Use Only
SR No.003893
Book TitleSambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantipriyasagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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