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अतीत के साथ व मन का संबंध भविष्य के साथ है।" उन्होंने मन की आचार्य श्रीराम शर्मा एवं श्री चन्द्रप्रभ ने 'धर्म' पर उपयोगी मार्गदर्शन बज़ाय चित्त शुद्धि पर ज़ोर दिया है और चित्त शुद्धि को आत्म साक्षात्कार का दिया है। आचार्य श्रीराम शर्मा ने धर्म को दुराग्रह युक्त मान्यताओं, आधार माना है। उन्होंने चित्त शुद्धि के लिए ध्यान साधना करने व सद्गुणों अंधविश्वासों, रूढ़िवादिताओं, कर्मकाण्डी-कट्टरताओं और शोषणको बढ़ाने की प्रेरणा दी है।
उत्पीड़न से मुक्त कर विज्ञान-सम्मत, सदाशयपूर्ण, परमार्थ-परायण व आचार्य श्रीराम शर्मा एवं श्री चन्द्रप्रभ ने यज्ञादि कर्म के स्वरूप पर संवेदनशील बनाने की कोशिश की है। उन्होंने धर्म का मर्म नीतिमत्ताप्रकाश डाला है। आचार्य श्रीराम शर्मा ने यज्ञ के तीन अर्थ बताए हैं - शालीनता को माना है। वे धर्म के अंतर्गत निम्न बिंदुओं को जीने की प्रेरणा देवपूजन, परमार्थ व सुसंगति। देवपूजन अर्थात् व्यक्ति अपने भीतर में देते हैं - सत्य, विवेक, संयम, कर्त्तव्यपरायणता, अनुशासन, व्रतधारण, निहित देवशक्तियों को यथोचित सम्मान देते हए उन्हें बढ़ाए, परमार्थ स्नेह-सौजन्य, पराक्रम, सहकार व परमार्थ। अर्थात् भावनाओं में सत्प्रवृत्ति का समावेश होता चला जाए और सुसंगति श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में धर्म की शुरुआत मंदिर, मस्जिद, चर्च, अर्थात् सज्जनों का संगठन व राष्ट्र को समर्थ-सशक्त करने वाली सत्ताओं गिरजाघर या धर्म स्थानों से करने की बजाय घर-परिवार व जीवन से का एकीकरण ।श्री चन्द्रप्रभ ने यज्ञ का संबंध भीतर में ज्ञानाग्नि प्रकट करना करने की प्रेरणा दी गई है। उन्होंने धर्म के अंतर्गत चार प्रेरणाएँ दी हैं - एवं उसमें अज्ञान की आहूति देने से माना है। वे कहते हैं, "सच्चा यज्ञ अपने कर्तव्यों का पालन करना, इंसान होकर इंसान के काम आना, अपने भीतर की ज्ञानाग्नि में पशुत्व की आहूति देना है।" इस तरह श्रीराम अपने मन की कमजोरियों पर विजय पाना और सभी धर्मों व महापुरुषों शर्मा ने यज्ञ को बाह्य शुद्धि के साथ अंत:करण की शुद्धि से जोड़ा है और श्री का सम्मान करना। इस तरह दोनों दार्शनिकों ने धर्म को क्रियाकांडों से चन्द्रप्रभ ने उसे ज्ञानयोग से संबंधित बताया है।
मुक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है। आचार्य श्रीराम शर्मा एवं श्री आचार्य श्रीराम शर्मा एवं श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में स्वास्थ्य पर विस्तार चन्द्रप्रभ अपने दर्शन में विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय की, धर्म को से मार्गदर्शन प्राप्त होता है। आचार्य श्रीराम शर्मा ने स्वास्थ्य का संबंध वैज्ञानिक बनाने की, शिक्षा को संस्कार युक्त करने की, गृहस्थ जीवन आहार, खानपान व रहन-सहन की आदतों के साथ जोड़ा है। उन्होंने को संत की तरह जीने की, नारी जाति को आगे बढ़ने की और स्वास्थ्य हेतु संयमित व सात्त्विक आहार लेने की व नियमित रूप से राष्ट्रोत्थान के लिए युवापीढ़ी को आगे आने की प्रेरणा देते हैं। योगासन-प्राणायाम करने की विशेष प्रेरणा दी है। उन्होंने बीमारी में घरेलू निष्कर्षत:कहा जा सकता है कि जहाँ एक तरफ आचार्य श्रीराम शर्मा चिकित्सा करने को प्राथमिकता दी है। श्री चन्द्रप्रभ के दर्शन में सदाबहार ने वैदिक धर्म-दर्शन को विस्तार दिया, उसे वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया स्वस्थ रहने हेतु सात्त्विक,संयमित व संतुलित आहार लेने; ध्यान-योग को और गायत्री मंत्र विद्या को आधार बनाकर यज्ञ-हवन आदि क्रियाएँ करने अपनाने व सदा प्रसन्न रहने की प्रेरणा दी गई है।
की प्रेरणा दी। इस तरह उनके दर्शन का धर्म व राष्ट्र के उत्थान में विशेष आचार्य श्रीराम शर्मा एवं श्री चन्द्रप्रभ ने परिवार पर महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वहीं दूसरी तरफ श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन-मूल्यों को विचार प्रकट किए हैं। श्रीराम शर्मा ने सशक्त परिवार को समाज का आत्मसात् करने का सरल मार्गदर्शन देकर व्यक्तित्व को ऊपर उठाने की मेरूदण्ड माना है और उसके पाँच आधार-स्तंभ माने हैं - श्रमशीलता, कोशिश की। स्वर्ग-नरक को घर-परिवार व जीवन के उत्थान-पतन के सुव्यवस्था, मितव्ययता, शालीनता और सहकारी उदारता। उन्होंने रूप में व्याख्यायित किया, धर्म को क्रियाकांडों से मुक्त कर जीवंत बनाया पारिवारिक बिखराव को राष्ट्र के लिए खतरनाक बताया है। उन्होंने और व्यक्ति को सभी पंथ-परम्पराओं का सम्मान करना सिखाया जो कि संयुक्त परिवार का समर्थन किया है। उन्होंने 'समाज का मेरूदण्ड : सामाजिक व नैतिक विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सशक्त परिवार तंत्र' पुस्तक में परिवार निर्माण पर विस्तार से प्रकाश डाला है। श्री चन्द्रप्रभ का दर्शन 'परिवार-निर्माण' के प्रति विशेष
आचार्य महाप्रज्ञ एवं श्री चन्द्रप्रभ सजग है। श्री चन्द्रप्रभ ने 'परिवार' को दुनिया का आठवाँ वार कहा है
दर्शन के क्षेत्र में आचार्य महाप्रज्ञ एवं श्री और सातों वारों को सुखी बनाने के लिए परिवार को सुधारने की प्रेरणा
चन्द्रप्रभ इन दोनों दार्शनिकों का महत्त्वपूर्ण दी है। उन्होंने स्वर्ग-नरक की परिवार के संदर्भ में व्याख्या करते हुए
स्थान है। दोनों दार्शनिकों ने जीवन-जगत के कहा है, "जिस घर में भाई-भाई के बीच प्रेमभाव होता है, सुबह
विविध तत्त्वों को नए ढंग से व्याख्यायित किया, उठकर सभी माँ-बाप को प्रणाम करते हैं और सास-बहू साथ-साथ
उन्हें प्रायोगिक रूप से प्रस्तुत कर जीवन और मंदिर जाते हैं वह घर धरती का स्वर्ग है और जहाँ भाई-भाई के बीच
दर्शन को नई दिशा प्रदान की। आचार्य महाप्रज्ञ कोर्ट केस चलते हैं, माँ-बापको अपने हाथों से खाना बनाना पड़ता है, देवरानी-जेठानी एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं
के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को देखें तो पता वह घर धरती का जीता-जागता नरक है।" उन्होंने वर्तमान में राम का
चलता है कि वे तेरापंथ जैन धर्म संघ के प्रभावशाली आचार्य रहे हैं। नाम लेने व पूजा करने से ज़्यादा रामायण को जीवन से जोड़ने की प्रेरणा
उन्होंने जैनागमों पर शोध किया, विस्तृत व्याख्याएँ की और उनकी दी है। उन्होंने परिवार को स्वर्गनुमा बनाने के निम्न सूत्र दिए हैं -
अन्य दर्शनों के साथ तुलनात्मक विवेचना कर उन्हें वैज्ञानिक स्वरूप
देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जीवन1. एक-दूसरे का सहयोग करें।
विज्ञान' और साधना के क्षेत्र में 'प्रेक्षाध्यान' जैसे उपयोगी अवदान 2.आपस में संगठन रखें।
दिए। उन्होंने 'अहिंसा यात्रा' के माध्यम से लोगों को अहिंसा का 3.किसी के सम्मान में कमी न आने दें।
प्रशिक्षण भी दिया। 4.त्याग के लिए तत्पर रहें।
आचार्य महाप्रज्ञ ने स्वरचित साहित्य में शरीर, आत्मा, प्राण, मन, 5.स्वच्छता अपनाएँ
चित्त, लेश्या, कर्म, धर्म, मंत्र-ध्यान, अध्यात्म-विज्ञान, विचार118 »संबोधि टाइम्स
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