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"महावीर के अधर मौन हैं, पर स्वयं महावीर का जीवन मखर है । शान्ति उनकी आभा है और वीतरागता उनका जीवन | चलते वक्त चरणों में स्वर्णकमलों का बिछना, स्वर्ण-रत्न के समवशरण रचना-ये सब तो भक्तों की भक्ति का अतिशय है । वस्तुतः महावीर । निस्पृह हैं, वीतराग हैं । आत्मा ही उनकी सम्पदा है । परमात्मा ही उनका स्वरूप है, गुरु भी अपने भी अपने वे ही हैं । उनका भगवान् भी उनमें ही साकार हुआ है । उनकी भगवत्ता फैली है चहुँ ओर, सब ओर | ज्योति कलश छलके ।
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-ललितप्रभ
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