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________________ है । बंधन वह है, जहाँ पदार्थ भावनाओं की दृढ़ता है, और मोक्ष वह है जहाँ से वासनाओं की क्षीणता है। जैसे एक पाँव आगे बढ़ाने से पीछे का स्थान छूट जाता है; संसार ही संन्यास बन जाता है, वैसे ही बंधन और मोक्ष की प्रक्रिया है । बन्धन और मोक्ष लोग इनमें चूक जाते हैं। मैं देखता हूँ लोग मोक्ष की चर्चाएं करते रहते हैं । मोक्ष कहाँ है ? कैसा है ? क्या स्वरूप है उसका ? पता नहीं कैसे-कैसे प्रश्न खड़े कर देते हैं ? जबकि मोक्ष की न तो चर्चा की जानी चाहिये और न ही व्याख्या, यह तो मात्र अनुभव गोचर है। अगर चर्चा करना चाहते हैं, तो बंधन की चर्चा करो, अगर विचारविमर्श करना चाहते हो, तो वासना का करो, अगर प्रश्न खड़े करना चाहते हो अपनी तृष्णा पर करो क्योंकि ये सब प्रत्यक्ष हैं । इनसे दुःखी हो, संत्रस्त हो, दबे आये हो । मोक्ष उसी स्थिति का नाम है जहाँ इनसे छूट जाओगे । बंधन छूटा कि मुक्ति हुई । मरने के बाद मुक्ति मिलती हो ऐसा न समझें, मृत्यु के उपरान्त तो निर्वाण होता है | इसलिए महावीर और बुद्ध जैसे मनीषियों के लिए, जीवित अवस्था में भी 'मुक्त-पुरुष' शब्द का प्रयोग किया गया । 'मुक्त-पुरुष' का अर्थ है, वह व्यक्ति जिसने गिरा दिये हैं अपने बंधन, जो निकल आया है संसार के काराग्रह से । संसार के जितने भी धर्म-शास्त्र हैं, उपदेष्टा हैं, चिन्तक या दार्शनिक हैं, अगर उनके सम्पूर्ण दर्शन और चिंतन का सार ढंढे तो इन दो शब्दों में निहित है । ये दो शब्द ऐसे हैं, जिन पर जितने घंटे बोलना चाहो बोल सकते हो, इनमें बंधन को दुःख रूप समझें और मोक्ष को सुख रूप । 'बंधन और मोक्ष के सिद्धान्तों के बारे में लोग चर्चा करते हैं ।' महावीर कहते हैं, इन पर केवल चर्चा नहीं करनी चाहिये, इनको अमल में लाना चाहिये | चित्त और चैत्य-विषय-वासनायें जब इन दोनों का संबंध जुड़ता है, तब व्यक्ति बंधन में जकड़ जाता है और जब इन दोनों का विभाजन होता है, चित्त, चिंता-मुक्त हो जाता है और चैत्य गिर जाता है, तब साधक मोक्ष की अंगड़ाई लेता है । धीरे-धीरे संकल्प गिर जातें हैं और मुक्ति साधक की हथेली में होती है । ___ महावीर बंधन और मोक्ष की बातें बताते हैं । हकीकत में महावीर ने मोक्ष की चर्चाएं कम की हैं, बंधन पर अधिक प्रकाश डाला है । इसलिए उन्होंने पहला शब्द दिया, बंधन और उसके बाद मोक्ष । दीप बनें देहरी के| १४७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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