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________________ महासति पट्ठान-सुत्त : श्री चन्द्रप्रभ भगवान बुद्ध द्वारा विपश्यना-साधना की मौलिक प्रस्तुति । मूल वाणी एवं हिन्दी-अनुवाद। आत्म-साधना में सहयोगी मार्गदर्शन। पृष्ठ 48, मूल्य 7/वर्ल्ड रिनाउण्ड जैन पिलिग्रिमेजेज : रिवरेंस एण्ड आर्ट : महो. ललितप्रभ सागर कला और श्रद्धा के क्षेत्र में विश्व-प्रसिद्ध जैन तीर्थों की रंगीन चित्रों के साथ नयनाभिराम प्रस्तुति । अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बहुचर्चित ग्रन्थ । अपने विदेशी मित्रों को उपहार-स्वरूप प्रदान करने के लिए अनुपम ग्रन्थ । ___ पृष्ठ 160, मूल्य 300/ विशेष – अपना पुस्तकालय अपने घर में बनाने के लिए फाउण्डेशन ने एक अभिनव योजना बनाई है। इसके अन्तर्गत आपको सिर्फ एक बार ही फाउण्डेशन को पन्द्रह सौ रुपये देने होंगे, जिसके बदले में फाउण्डेशन अपने यहाँ से प्रकाशित होने वाले प्रत्येक साहित्य को आपके पास आपके घर तक पहुँचाएगा और वह भी आजीवन । इस योजना के तहत एक और विशेष सुविधा आपको दी जा रही है कि इस योजना के सदस्य बनते ही आपको रजिस्टर्ड डाक से फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित सम्पूर्ण उपलब्ध साहित्य' निःशुल्क प्राप्त होगा। ध्यान रहे, साहित्य वही भेजा जा सकेगा जो उस समय स्टॉक में होगा। रजिस्ट्री चार्ज एक पुस्तक पर 20/- रुपये, न्यूनतम दो सौ रुपये का साहित्य मँगाने पर डाक व्यय संस्था द्वारा देय। धनराशि ‘श्री जितयशाश्री फाउण्डेशन' के नाम ड्राफ्ट बनाकर कोलकाता या जयपुर के पते पर भेजें। वी.पी.पी. से साहित्य भेजना शक्य नहीं होगा। आज ही लिखें और अपना ऑर्डर निम्न पते पर भेजें जितयशा फाउण्डेशन 9 सी-एस्प्लानेड रो ईस्ट बी-7, अनुकम्पा, द्वितीय रूम नं. 28, धर्म तल्ला मार्केट ___ एम.आई.रोड कोलकाता-700 069 जयपुर-302 001 (राज.) 122208725 02364737 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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