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________________ अगर मरने के बाद स्वर्ग का इंतजाम करना है, तो कोई इंतजाम करके जाओ कि मरने के बाद किसी और को हमारी आत्मशांति के लिए प्रार्थना न करनी पड़े। हमारी शांति के इंतजाम हम खुद करके जायें। तभी गीता को सुनने की सार्थकता है। गीता की तरह हर धर्म में अपने पवित्र धर्मग्रन्थ, महान् सिद्धान्त और महान दृष्टिकोण हैं। हर धर्म के पास जाओ, हर धर्म की अच्छी बातों को सीखो, उनको अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करो। सारे धर्म हमारे हैं, सारे शास्त्र हमारे हैं । सारे शास्त्रों की अच्छी बातें हमारे लिए हैं । हम गुणग्राहक होकर हर शास्त्र, हर धर्म, हर व्यक्ति की अच्छी बातों को अपने जीवन में स्वीकार करने का प्रयास करें । मेरी ओर से यही गीता का उपसंहार है । परम पिता परमात्मा से यही प्रार्थना करता हूँ कि भगवान, कुछ ऐसा करो, कोई एक ऐसा मंगल-आशीष प्रदान करो कि हम सही तौर पर सही मार्ग पर जीवन भर चलते रहें । भगवान ! तुम कहते हो जब-जब धरती पर अधर्म का अंधकार बढ़ता है, तुम अवतार लेते हो। चरण-शरणं, हम तुम्हारी शरण में हैं । तुम्हारा अन्तःकरण में आह्वान कर रहे हैं। तम हमारे दिलों में अवतार लो। हमें जीवन के महाभारत का पार्थ बनाओ। हमारे तमस हरो, हमें प्रकाश से भरो । हम किसी फूल की तरह तुम्हारे चरणों में स्वयं को समर्पित करते हैं । स्वीकार करो। जगत के महाभारत में, हे जीवन-सारथी ! हम कभी नपुंसक न हों, कायर न हों, कर्त्तव्य-कर्मों के प्रति आसक्त न हों । तुम्हारे होकर जीयें । हाँ, कभी लगे, ये तुम्हारे अर्जुन जीवन-युद्ध में विचलित होते, कंपित होते, तुम हमसे मुखातिब हो जाना और एक बार अपनी गीता हमें भी कह देना, अधिक न भी सही, इतना ही कह देना जागो मेरे पार्थ ! जागो मेरे भारत ! इतना ही काफी होगा, गीता का सार सूत्र और सारमंत्र होगा। आपने मुझे, इतनी तन्मयता और हृदय से सुना, आभारी हूँ । मेरा प्रेम आप सब तक पहुँचे, अनन्त रूप में, अनन्त वेश में । नमस्कार। बूंद चले सागर की ओर | 221 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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