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रह जाओगे, वंचित रह जाओगे । दुनिया में कोई भी आदमी पूर्ण नहीं है, लेकिन एक बात तय है कि दुनिया के निम्न से निम्न, घटिया से घटिया समझे जाने वाले आदमी में भी कोई-न-कोई खासियत ज़रूर है । अपनी दृष्टि को इतनी महान् बनाओ कि तुम्हें उस व्यक्ति का वह गुण दिखाई दे जाये, उसके अवगुणों, उसके तमस पर तुम्हारी नज़र ही न पड़े। हमने अगर उसके जीवन के तमस को देखा, चर्चा-परिचर्चा की, तो इसका अर्थ यह हुआ कि हम भी उसी अंधेरे से घिरे हैं, तभी तो हमें अंधेरा ही नज़र आया। अपनी दृष्टि को निर्मल बनाओ, प्रकाशवान बनाओ ।
महावीर ने अनेकांत की बात कही कि तुम्हारी बात में भी सच्चाई है और उसकी बात में भी सच्चाई है । महावीर, बुद्ध या कृष्ण की बातों के भीतरी मर्म को न समझने वालों ने बातों ही बातों में बात का बतंगड़ बना डाला और उसने झगड़ों का रूप ले लिया। मेहरबानी करके सही बातों को लेकर झगड़े न करें, क्योंकि जितनी हानि साम्प्रदायिक व संकीर्ण विचारधारा के चलते हुई है, उतनी किसी से नहीं हुई। तभी तो कृष्ण कहते हैं कि तुम प्रभुता के मार्ग के चयन में क्यों झगड़ते हो ? तुम जिस किसी मार्ग से चलोगे, वह मुझ तक ही पहुँचायेगा ।
जब भगवान के परम भगवत स्वरूप का दर्शन कर लिया जाता है, तो अहोभाव के साथ अर्जुन कृष्ण से पूछते हैं कि आपने मुझे अपना विराट स्वरूप दिखाया और कहा कि यह विराट स्वरूप हर किसी को देखने को नहीं मिलता, तो मैं आपसे एक बात पूछूंगा कि आपको पाने के लिए, आपको उपलब्ध करने के लिए कौन-सा मार्ग सरल से सरलतम है ? तब कृष्ण अपनी ओर से जो बातें कहते हैं, वे बातें ही गीता के बारहवें अध्याय में समाहित हैं ।
कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति वीतराग, वीतद्वेष और वीतमोह के मार्ग से चल रहा है, तो भी वह मुझ तक पहुँच रहा है । अगर कोई व्यक्ति स्थितप्रज्ञ, अनासक्त और जीवन-मुक्त होकर मेरी ओर आ रहा है, तो भी वह मेरी ओर ही बढ़ रहा है । कोई शीलवान, समाधिवान और प्रज्ञावान होकर परम मार्ग पर चल रहा है तो भी वह मेरी ओर ही आ रहा है । कोई व्यक्ति प्रेम और करुणा से ओत-प्रोत होकर मानवता और प्राणीमात्र की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर रहा है, तो वह मेरी ही पूजा कर रहा है । अगर कोई व्यक्ति जात-पांत को भुलाकर सामाजिक समता को जीते हुए मेरी इबादत कर रहा है, तो वह वास्तव में मुझ तक ही पहुँच
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मन में. मन के पार । 143
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