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________________ भगवान की तरह आदमी सुख को भी बाहर ढूढता है, क्योंकि उसका मन और इन्द्रियां बाहर की ओर देखती हैं। उसके विचार हमेशा बाहर के साथ जुड़े रहते हैं। आदमी जब परमात्मा को बाहर ढूढता है तो वह अपनी पहचान भी बाहर के द्वारा करवाना चाहता है। कोई दूसरा कह दे कि आप अच्छे हैं तो आप मान लेंगे कि आप सुन्दर हैं, अच्छे हैं। किसी ने बुरा कह दिया तो आप बुरा समझते हुए उदास हो जाते हैं । दिन भर में मिलने वालों में से आधे लोगों को हम अच्छे लगते हैं तो आधे हमें बुरा कहते हैं । हमारे भीतर एक अन्तर्द्वन्द्व पैदा हो जाता है कि हम अच्छे हैं या बुरे ? निर्णय हम नहीं कर पाते। हम अपना सुख बाहर देखना चाहते हैं और अपने आप की पहचान भी बाहर से करवाना चाहते हैं। व्यक्ति अपने को आइने के सामने ले जाता है और खुद की पहचान करना चाहता है। उसे अपना बोध नहीं है, आइने से पुष्टि करना चाहता है । पाप आइने के सामने जाते हैं तो वहां आपको क्या दिखाई देता है ? केवल आपका चेहरा, हाथ-पांव । आपके विचार दिखाई देते हैं ? आपकी मानसिकता आइने में उभरती है ? तो इस तरह आइने में हमें आत्मा-परमात्मा भी दिखाई नहीं देंगे। वहां केवल बाहरी स्वरूप प्रतिबिम्बित होगा। सुख और शांति बाहर नहीं है। __ आदमी अपना दुःख किसी को सुनाना चाहता है ताकि उसका मन हल्का हो जाए । कल एक महिला मेरे पास आई और अपना दुखड़ा रोने लगी। इतने में एक और महिला वहां पहुंची और वह अपनी राम कहानी सुनाने लगी। थोड़ी देर में क्या देखता हूं कि दोनों औरतें मुझसे नहीं, एक दूसरी से मुखातिब हैं और लपना-अपना दुख ( ८५ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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