________________
जीवन है। यह जन्म से पहले भी था और मृत्यु के बाद भी रहेगा जिस चीज को मृत्यु के बाद मृत मानोगे, वह आज भी मृत ही है ।
जिस शरीर को हम जीवित मानते हैं, वह जीवित नहीं है । जीवित तो इसके भीतर कोई प्रारण है, तत्व है। ऐसी कोई समय की चेतना है जिसके कारण शरीर जीवित दिखाई देता है। यह तत्व चेतना अगर निकल जाए तो शरीर मुर्दे की तरह पड़ जाएगा। जो मृत है वो तो मृत ही रहेगा। जो जीवित है, उसे सौ बार चिता में जला दो तो भी वह जीवित ही रहेगा। उसकी मृत्यु नहीं होगी। वह अमर है।
समय का कोई खण्ड नही होता, लेकिन हमने खण्ड-खण्ड कर दिए हैं। चार युग माने जाते हैं- सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कल युग, जो चल रहा है । शास्त्रों को पढ़कर, इतिहास को समझकर हम यह जान सके हैं कि ये चारों युग हैं । ऐसा नहीं है कि सतयुग में सभी लोग सच्चे थे, इन चारों युगों में कलियुग का असर देखने को मिलता है और कलियुग में भी बीते युगों की ताजगी देखने को मिलती
ऐसा नहीं है कि जो गुजर गया, वही स्वर्ण युग है। सच्चाई तो यह है कि जिस युग में हम पैदा हुए, हमारे लिए तो वही स्वर्ण युग है । अगर हम अपने युग को सतयुग या स्वर्ण युग नहीं बना सकते तो यह हमारी कमजोरी है। यह माना जाता था कि सतयुग में पाप नहीं होता था, सारे पुण्यात्मा उसी युग में थे। त्रेता और द्वापर युग में भी पाप कम ही होते थे और कलयुग में भी ऐसा नहीं है कि चारों तरफ पाप ही पाप हो, अनाचार हो। धरती के इतिहास में जैसा स्वर्णिम युग अब आया है....।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org