SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप किसी से पूछिये - भाई ! तुम्हारी पूंजी क्या है ?, वह तुरंत कह देगा - ' मेरे बैंक खाते में दस लाख रुपये जमा है । दो बंगले हैं।' इसके अलावा क्या ऐसी पूंजी है जो मृत्यु छीन न सके ? ये मेरी जमीन, ये तुम्हारी जमीन । यह कहकर तो हम केवल भौतिक आधिपत्य की घोषणा कर सकते हैं । इसी क्रम में वह सोचता है मृत्यु तो कल आएगी, आज तो जी लें। आदमी सोचता है मैं थोड़े ही मरूंगा, कोई और मरेगा । आदमी देखता है, फलां का स्वर्गवास हो गया । वह यह नहीं सोचता ऐसा दिन उसका भी आने वाला है । पर दूसरे की मृत्यु उसे स्वयं की मृत्यु की पूर्व सूचना है । वह सारे नियम दूसरे आदमियों पर ही लागू करता है । नियम होते ही दूसरों पर लागू करने के लिए हैं । एक अधिकारी दूसरे को गाली देगा दूसरा तीसरे को । मैं कहता हूं वास्तविक नियम तो वे हैं जो सब पर समान रूप से लागू हों । जब नियम बन गया तो कोई अपवाद नहीं होता । ये तो समय का बहता सागर है, कब किसको, कहां बहा कर ले जाएगा, कोई नहीं जानता । सागर का यह पानी जब तक बरगद को सींचता है, पूरे मनोयोग से सींचता है और जिस दिन बहा कर ले जाना चाहेगा, उस दिन बरगद को भी जड़ से उखाड़ देगा | आदमी उम्र भर सोया रहता है । जब मृत्यु प्राती है, तब उसकी नींद खुलती है । लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । अगर किसी को पता चले कि तीन दिन बाद उसकी मृत्यु होने वाली है तो वह शेष तीन दिन में कोई छल-प्रपंच नहीं करेगा । आदमी सोचता है मैं सौ साल जिऊंगा । सत्तर पार करने के बाद भी उसकी जीजीविषा नहीं मरती । उसे लगता है अभी तीस साल तो जिऊंगा ही । तुम हर काम कल पर टालते हो । कल जीवन है लेकिन उसका Jain Education International ( १२७ ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy