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भी ऐसे ही तड़फोगे। ये धन-दौलत यहीं पड़ा रह जाएगा। कहते हैं कि इस घटना के छह माह के भीतर सिकन्दर की मृत्यु हो गई।
___ अपरिग्रह के दो आदर्श महावीर और गांधी। परिग्रह के भी दो आदर्श भरत और सिकंदर । महावीर, गांधी, भरत, सिकन्दर सभी चले गए। अपने साथ क्या ले गए ? सब कुछ यहीं तो पड़ा है। आदमी का व्यामोह ही ऐसा है कि वह सोचता है ये मेरा माल, ये मेरा मकान, परिवार, महल-महराब । आखिर हम किस को वास्तव में अपना माल कहें।
आप और हम जहाँ बैठते हैं, उतनी-सी जगह में कम से कम दस लोग दफनाये जा चुके हैं या चिताएं जल चुकी हैं। धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ ऐसा नहीं हरा हो । जहान में ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ अमरता की निशानी हो । सारी धरती श्मशान या कब्रिस्तान है, जिसे हम अपना स्थान कहते हैं । क्या पता, कहाँ, किसकी कब्र है ? लेकिन हम लोग कहते हैं, ये मेरी जमीन है । जमीन की सीमा बांधते हैं । जमीन के लिए लड़ते-झगड़ते हैं। एक दिन उसी जमीन को छोड़कर चले जाते हैं। हमारा शरीर राख बन जाता है । जीवन की सारी अकड़ माटी हो जाती है ।
परिग्रह के चलते कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा है कि माल तो बचता जा रहा है और बटोरने वाला मालिक खोता जा रहा है । एक बार ऐसा हुआ कि एक मकान में आग लग गई । सेठ बाहर गया हुआ था। सूचना मिली तो दौड़कर आया। उसने देखा कि घर का सामान बाहर रखा था। नौकर ने अक्लमंदी का परिचय दिया था। सेठ ने चैन की सांस ली कि चलो सामान बच गया । फिर एकाएक उसने पूछा कि मेरा बेटा कहां है, जो भीतर के तीसरे कमरे में सोया
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