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________________ जागे सो महावीर का उपयोग किया, पर मेरा मन वहाँ नहीं बँधा हुआ है। सन्त वह है जो समता, प्रेम, सहिष्णुता, दया, करुणा में स्थितप्रज्ञ हो गया है और गृहस्थ वह है जो मूर्छा, आसक्ति और मोह के दलदल में फँसा हुआ है। ____ भगवान के आज के सूत्र उन लोगों के लिए कामयाबी के सूत्र हो जाएँगे जिनके हृदय में अनासक्ति और मुक्ति के फूल खिलाने की उत्कण्ठा है। रागो य दोसो विय कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति। कम्मं च जाईमरणस्स मूलं दुक्खं च जाईमरणं वयंति॥ महावीर इस सूत्र के माध्यम से जीवन का विज्ञान प्रस्तुत करते हैं। वे कहते हैं, 'राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होता है। मोह जन्म और मरण का मूल है तथा जन्म और मरण दुःख का कारण है।' कितना साफ-सुथरा सूत्र है ऐसे ही कि जैसे कोई गणित का सूत्र हो। जिस तरह गणित में एक और एक दो होते है, दो और दो चार होते हैं, ऐसे ही महावीर ने जीवन के गणित को स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने इस सूत्र द्वारा मुक्ति का मनोविज्ञान स्थापित किया है। उनके द्वारा दिए गए ये सूत्र सूत्र नहीं, वरन् उनके द्वारा खींची गई ज्यॉमिति है। महावीर कहते हैं कि राग और द्वेष ही कर्म के बीज हैं। खेत में जैसे बीज बोए जाएँगे, वैसी ही तो फसल होगी। लहलहाती फसल का ख्वाब देखने से पहले उन बीजों की पड़ताल की जानी चाहिए जिनकी सन्तति यह फसल है। यदि आक या धतूरे का बीज बोया जाएगा तो आक या धतूरे का ही पौधा निकलेगा। ___ यदि बीज कड़वा है तो लगने वाले फल भी कड़वे होंगे। यदि बीज मीठा है तो उससे उत्पन्न फल भी मीठा होगा.। हम पल-प्रति-पल कदम-दर-कदम राग-द्वेष के बीज बोते हैं और प्रार्थना करते हैं वीतराग होने की। बहुत ही अच्छा व्यंग्य है यह किभावना राग की और प्रार्थना वीतराग की! दोनों ही में बहुत बड़ा विरोधाभास है। आदमी की स्थिति कार चलाने वाले उस मूर्ख चालक की तरह है जो एक्सीलरेटर और ब्रेक दोनों का ही साथ-साथ उपयोग करना चाहता है। ... यदि एक्सीलरेटर का ही प्रयोग किया जाए तो कार को गति मिल सकती है और यदि ब्रेक का ही उपयोग किया जाए तो कार रुक सकती है, पर व्यक्ति दोनों का ही मज़ा साथ-साथ लेना चाहता है। वह दोनों एक ही साथ दबाता है। तब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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